महाराष्ट्र : राम भक्तों के आपसी सर-फुटव्वल की दिलचस्प कहानियाँ डॉ. सलीम ख़ान

महाराष्ट्र : राम भक्तों के आपसी सर-फुटव्वल की दिलचस्प कहानियाँ

डॉ. सलीम ख़ान

महाराष्ट्र में रजनैतिक संकट का आरंभ यों हुआ कि मुंबई में विधान परिषद के दस सदस्यों का चुनाव होना था। इसमें अपनी ताक़त की दृष्टि से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के 6 और बी.जे.पी. के 4 उम्मीदवार सफल हो सकते थे। उम्मीदवारों की संख्या अगर इसी तरह से होती तो वोटों की गिनती की ज़रूरत ही पेश नहीं आती। महा विकास अघाड़ी ने अपने 6 उम्मीदवारों का आपस में समान रूप से विभाजन कर दिया, लेकिन विधायक समान नहीं थे। कांग्रेस के पास कम और शिवसेना के पास अतिरिक्त संख्या थी। इसका लाभ उठाने की ख़ातिर बी.जे.पी. ने अपना पाँचवाँ उम्मीदवार भी मैदान में उतार दिया। देवेंद्र फडणवीस संसद में अतिरिक्त वोट को लेकर उत्साहित थे और उनकी इच्छा थी कि इस दाँव को फिर से आज़माया जाए। बी.जे.पी. ने सोचा अगर शिवसेना के ये अतिरिक्त वोट कांग्रेस के बजाय उसकी झोली में आ जाएँ तो महा विकास अघाड़ी को नुक़सान पहुँचाने का एक मौक़ा हाथ आ सकता है।

वर्तमान समय में विधायकों या सांसदों से ज़्यादा बिकाऊ माल तो कोई है नहीं? और बी.जे.पी. के पास धन-दौलत की भरमार है। इसलिए उसे इस्तेमाल करके पाँचवाँ कमल भी खिला दिया गया। इस तरह कांग्रेस का एक हाथ टूट गया। बी.जे.पी. को दूसरी पार्टियों की रुसवाई के मुक़ाबले कांग्रेस को ज़लील करने में ज़्यादा ख़ुशी होती है, क्योंकि फ़िल्हाल मोदी को मुँहतोड़ जवाब देने में पहला नम्बर राहुल गाँधी का है। इसी लिए उन्हें ई.डी. के द्वारा परेशान किया जा रहा है। बात यहीं पर ख़त्म हो जाती तो ठीक था, लेकिन जिन विधायकों ने कांग्रेसी उम्मीदवार को हराकर बी.जे.पी. के एम.एल.सी. को कामयाब किया था, उन्हें जश्न मनाकर ‘मान धन’ (रिश्वत) लेने का हक़ था। इसलिए इन सबको यह कहकर बस में बिठाया गया कि एकनाथ शिंदे के शहर ठाणे में खाने की दावत है। यह सफ़र अगर हवाई जहाज़ से करने के लिए कहा जाता तो सब समझ जाते कि सफ़र का सामान कहीं और के लिए बाँधा जा रहा है, क्योंकि अभी तक ठाणे में एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दिघे के नाम पर कोई हवाई अड्डा नहीं बन सका है।

लग्ज़री बस में सवार होनेवालों को उम्मीद रही होगी कि ठाणे में आनंद दिघे की यादगार पर श्रद्धांजलि के बाद सारे मामले तय हो जाएँगे और अपना पारिश्रमिक लेने के बाद घर वापसी हो जाएगी, लेकिन उनके साथ जो कुछ हुआ उसकी दिलचस्प कहानी शिंदे का साथ छोड़कर फ़रार होनेवाले शोलापुर के विधायक कैलाश पाटिल ने इस तरह सुनाई कि रामसे की सस्पेंस थ्रिलर भी उसके सामने फ़ेल है। कैलाश ने कहा कि विधायकों का ग्रुप जब उक्त पार्टी में भाग लेने के लिए ठाणे जा रहा था तो अचानक गाड़ी ने अपना रास्ता बदला और वे घोड़बंदर रोड से गुजरात की ओर चल पड़ी। गुजरात का नाम सुनकर आजकल अच्छे-अच्छों को झुरझुरी महसूस होने लगती है। ऐसे में कैलाश पाटिल भी सन्देहों का शिकार हो गए। यह क़ाफ़िला जब महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर स्थित पुलिस चेकपोस्ट पर पहुँचा तो शौच के बहाने कैलाश गाड़ी से उतर गए और फिर नहीं लौटे। इतनी कम संख्या में जाने-पहचाने लोगों के अंदर से एक व्यक्ति के कम होने का पता न चलना सवारियों की हालत को स्पष्ट करता है। इसकी एक वजह उनपर नींद का छा जाना और दूसरी उनका नशे में धुत होना हो सकता है। यह भी हो सकता है कि दोनों हालतें हों। ऐसे में किसी का अपहरण करना बहुत आसान हो जाता है। इसलिए शरद पवार का गृह मंत्रालय पर इससे बे-ख़बर रहने के कारण नाराज़ होना उचित नहीं लगता।

कैलाश पाटिल की उम्र सिर्फ़ चालीस साल है। वह पहली बार विधायक चुने गए हैं, हो सकता है कि उन्हें किसी बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त होने का मौक़ा न मिला हो, इसलिए ई.डी. के डंडे से बेख़ौफ़ हों। वह बस से उतरने के बाद अंधेरे का लाभ उठाकर तेज़ी से मुंबई की तरफ़ पैदल चल दिए। उनके मुताबिक़ लगभग 5 किलोमीटर के बाद उन्हें एक मोटर साइकिलवाले से लिफ़्ट मिली। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फ़ोन करके बताया कि एकनाथ शिंदे और अन्य लोग राजनैतिक संकट पैदा करनेवाले हैं। कैलाश पाटिल के फ़ोन पर संपर्क होने तक संभव है एकनाथ शिंदे के शिकार सूरत के क़रीब पहुँच चुके हों। कैलाश पाटिल किसी तरह भागते-दौड़ते कला नगर बांद्रा में स्थित उद्धव ठाकरे के निजी मकान ‘मातोश्री’ पहुँच गए। वहाँ से उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया गया। यह एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के पतन की दुखद कथा है। राजनैतिक पतनों की जघन्यता का यह हाल है कि राज्य विधानसभा में चुनकर जनता का प्रतिनिधित्व करनेवालों का मुंबई से अपहरण कर लिया जाता है। यहाँ पर अपहरणकर्ता, अपहरण करवानेवाले और अपहृत होनेवाले सभी हिंदुत्ववादी राम भक्त हैं। इससे उनके चाल, चरित्र और चेहरे का अंदाज़ा हो जाता है। उनकी प्राथमिकता में विचारधारा के मुक़ाबले सत्ता का महत्व भी बे-नक़ाब हो जाता है।

कैलाश पाटिल तो ख़ैर दरमियान से भाग खड़े हुए, लेकिन सूरत पहुँचने के बाद नितिन देशमुख के साथ होनेवाले सुलूक की कहानी भी कम शर्मनाक नहीं है। उसने तो हिंदुत्व के ध्वजावाहकों के चेहरे पर पड़ी केसरिया नक़ाब को तार-तार कर दिया है। अकोला के क़रीब बालापुर के विधायक नितिन ने दावा किया है कि उन्हें अपहृत करके सूरत ले जाने में तो वे लोग कामयाब हो गए, लेकिन चूँकि वह उद्धव ठाकरे के सच्चे वफ़ादार हैं, इसलिए बग़ावत का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था। देशमुख के मुताबिक़ उन्हें गुमराह करके उन की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ले जाया गया था। वह आधी रात में सूरत की होटल से निकलकर चौराहे पर आ गए, ताकि मुंबई जानेवाली किसी राह चलती सवारी से फ़रार हो सकें। लेकिन सौ से ज़्यादा पुलिसवाले उनका पीछा कर रहे थे। उन्हें किसी गाड़ी में सवार नहीं होने दिया गया, बल्कि पकड़कर ज़बरदस्ती होटल पहुँचा दिया गया। ‘दैनिक भास्कर’ समाचारपत्र के अनुसार देशमुख की पिटाई की गई। उसके बाद यह कहकर अस्पताल ले जाया गया कि उनपर दिल का दौरा पड़ा है। देशमुख ने वापस आने के बाद इल्ज़ाम लगाया कि उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ज़बरदस्ती उन्हें इंजेक्शन लगाए गए। उनके अनुसार अस्पताल वाले कोई बड़ी साज़िश करनेवाले थे, हालाँकि उनपर दिल का दौरा पड़ना तो दूर रहा, उनका ब्लड प्रेशर भी नहीं बढ़ा था। ऐसे में एक राम भक्त का दूसरे राम भक्त को रास्ते से हटाने की ख़ातिर जान का दुश्मन बन जाना ख़तरनाक आराधिक मानसिकता की ओर इशारा करता है।

नितिन देशमुख गुवाहाटी हवाई अड्डे पर पहुँच तो गए, लेकिन उतरने के बाद उनके इरादे बदल गए और वह बस में नहीं चढ़े, बल्कि वी.आई.पी. लाउंज में बैठे रहे। गुवाहाटी एयरपोर्ट से कुछ घंटे बाद वह अपनी पार्टी के 5 कार्यकर्ताओं समेत चार्टर्ड विमान से नागपुर लौट आए, क्योंकि अकोला वहाँ से क़रीब है। नितिन देशमुख का जान जोखिम में डालकर लौटना यह बताता है कि शाह जी के प्रबंध में अब भी कई लूप-होल हैं, जिनको फडणवीस अभी तक भर नहीं सके हैं। सच तो यह है कि नितिन देशमुख ने नागपुर उतरकर जिस दिलेरी के साथ अपना बयान दिया उसने संघ परिवार के गढ़ में उसके भय एवं आतंक की धज्जियाँ उड़ा दीं। यह किस क़दर अफ़सोस की बात है कि एक विधायक की पत्नी को उसके चुनाव-क्षेत्र में पुलिस थाने के अन्दर जाकर अपने पति की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करानी पड़े, ताकि वह उन्हें तलाश करके ला सके। पुलिस को इसका कष्ट तो नहीं करना पड़ा, लेकिन नितिन देशमुख ने नागपुर में उतरकर फडणवीस और गडकरी का दबदबा ख़ाक में मिला दिया।

पाटिल और देशमुख तो लौटके आनेवालों में से हैं, लेकिन इस दौरान एकनाथ शिंदे के ख़ेमे में दौड़कर जानेवाले विधायकों की कहानियाँ भी कम दिलचस्प नहीं हैं। उनमें से एक जलगाँव के विधायक की कहानी पर ध्यान दिया जाए तो उनके अंदर पाए जानेवाले डर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। गुलाब राव पाटिल वर्तमान सरकार में जल संसाधन के मंत्री हैं। वह आरंभ में एकनाथ शिंदे के साथ जाने से वंचित रहे, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि ई.डी. के चंगुल से बचने का यह बेहतरीन मौक़ा है। यह भी हो सकता है कि कोई ख़तरनाक फ़ाइल दिखाकर उन्हें भयभीत कर दिया गया हो। ख़ैर, वजह जो भी हो उनकी नीयत डोल गई तो वह भी अचानक ग़ायब हो गए। शिवसेना के नेताओं को इसकी भनक पड़ी तो उन्होंने अपने स्थानीय यूनिट को उनकी तलाश का हुक्म दे दिया। शाखा प्रमुख पांडुरंग सकपाल के नेतृत्व में रात-भर की तलाश व्यर्थ रही। लेकिन दिन सुबह 8.30 बजे अचानक गुलाब राव अपने घर के बाहर प्रकट हो गए और उन्हें देखकर सकपाल की बाछें खिल गईं।

पांडुरंग सकपाल ने गुलाब राव से कहा पिछली रात से सेना प्रमुख (उद्धव ठाकरे) उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए तुरन्त फ़ोन करें। इसका जवाब मिला कि वह अपने नेता से बात कर चुके हैं। मंत्रालय में संक्षिप्त काम ख़त्म करके वह स्वयं ‘वर्षा’ यानी मुख्यमंत्री के आवास पर मिलने के लिए साथ चले चलेंगे। भोले-भाले शिवसैनिकों ने इस झूठ पर विश्वास कर लिया और उनकी सरकारी गाड़ी के पास इंतिज़ार में बैठ गए, लेकिन जलगाँव के गुलाब दूसरे रास्ते से एक निजी गाड़ी के द्वारा चेम्बूर पहुँच गए। इसकी भनक पाने के बाद शिवसैनिकों ने पीछा किया, लेकिन मंत्री तो आख़िर मंत्री होता है। उसने वहाँ से हवाई अड्डे जाने का फ़ूल प्रफ़ू प्रबंध कर रखा था। इस तरह जलगाँव जैसे छोटे शहर का चालबाज़ मंत्री मुंबई के स्मार्ट समझे जानेवाले शिवसैनिकों के पर कुतरके उड़ गया। सत्ता की ख़ातिर इस तरह की धोखाधड़ी वर्तमान समय के राम भक्त ख़ुद अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ करते हैं तो दूसरों के साथ क्या सुलूक होता होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है।

——(अनुवादक : गुलज़ार सहराई)

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