अग्निपथ के अग्निवीर चार साल की नौकरी फिर अँधेरी रात डॉ. सलीम ख़ान

अग्निपथ के अग्निवीर
चार साल की नौकरी फिर अँधेरी रात
डॉ. सलीम ख़ान
देश के नौजवानों की नज़र में अग्निपथ योजना उनके भविष्य और कॅरियर से खिलवाड़ है। उन्हें इस बात का दुख है कि किसी को इस बात की फ़िक्र ही नहीं है कि मात्र चार सालों के अंदर सेवानिवृत्त होनेवाले अग्निवीरों को दोबारा रोज़गार कहाँ और कैसे मिलेगा? विरोध प्रदर्शन करनेवाले नौजवानों को शिकायत है कि अग्निपथ योजना वर्षों से फ़ौज में नियुक्ति के लिए तैयारी करनेवालों के भविष्य को अन्धकारमय कर देगी। सहारनपुर में सुप्रिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस ने नारेबाज़ी करनेवाले प्रदर्शनकारियों को बहला-फुसलाकर वापस भेजा। यही व्यवहार अगर एक हफ़्ते पहले मुस्लिम नौजवानों के साथ किया जाता तो हिंसा नहीं फूटती, लेकिन वहाँ तो छूटते ही लाठी डंडा और गोली तक का मामला था। उसके बाद पोस्टर और बुलडोज़र छोड़ दिया जाता। ज़िला आगरा के उत्तेजित नौजवानों ने अनेक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन करके बसों को नुक़्सान पहुँचाया। सदर इलाक़े में आर्मी नियुक्ति कार्यालय से शुरू होनेवाला विरोध प्रदर्शन शहर के अन्य भागों में फैल गया। प्रदर्शनकारियों ने आगरा-लखनऊ ऐक्सप्रेस-वे और एम.जी. रोड को बलॉक कर दिया। इस मौक़े पर नौजवानों ने कहा कि 20 जून तक केन्द्र सरकार ने इस योजना को वापस नहीं लिया तो वे दिल्ली की ओर मार्च करने को मजबूर होंगे। इन नौजवानों पर ताक़त का इस्तेमाल किया जाता तो निश्चय ही उसके परिणामस्वरूप भीड़ हिंसक हो जाती।
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का मामला यह है कि अगर मुसलमान विरोध प्रदर्शन का एलान करते हैं तो वह प्रशासन को उसे सख़्ती से कुचलने के आदेश जारी कर देते हैं। इसके विपरीत जब हिन्दुओं का प्रदर्शन होता है तो बड़ी नर्मी के साथ ट्विटर के सहारे नौजवानों से निवेदन किया जाता है कि “नौजवान साथियो! अग्निपथ योजना आपकी ज़िंदगी को नई संभावनाएँ उपलब्ध करने के साथ उज्ज्वल भविष्य का आधार बनेगी। इसलिए आप किसी बहकावे में न आएँ।” प्रदर्शनकारियों का दुख एवं क्रोध कम करने के लिए यह लिखा जाता है कि : ‘मात्रभूमि के सेवाभाव से ओतप्रोत हमारे ‘अग्निवीर’ राष्ट्र की बहुमूल्य निधि होंगे और यू.पी. सरकार अग्निवीरों को पुलिस-एवं अन्य सेवाओं में प्राथमिकता देगी’। किसी भी शासक का राजधर्म यही है लेकिन यह मामला किसी धर्म-सम्प्रदाय में भेद किए बिना सभी के साथ होना चाहिए। यह नहीं कि एक को तो बड़े प्यार से समझाया जाए और दूसरे को पोस्टर लगाकर या बुलडोज़र चलाकर धमकाया जाए। किसी प्रदर्शन करनेवाले को बलवाई कहा जाए और कभी बलवाइयों को प्रदर्शनकारियों का नाम दे दिया जाए। यह राजधर्म का उल्लंघन है? गेरुए वस्त्र धारण करके योगी कहलानेवाला शासक अगर इस तरह का भेदभाव करे तो ऐसा करके वह अपने धर्म को बदनाम करता है।
फ़ौज के हवाले से सरकारी योजना ‘अग्निपथ के विरुद्ध छात्रों और नौजवानों के प्रदर्शनों का सिलसिला जिस राज्य बिहार से शुरू हुआ, संयोग से वहाँ केन्द्र में सत्ताधीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे की हुकूमत है और इसमें सबसे बड़ी पार्टी बी.जे.पी. है। इसके बावजूद प्रदर्शन हिंसक हो गए और 22 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा, साथ ही पाँच ट्रेनों को आंशिक रूप से बीच में ही रोक दिया गया। रेल-गाड़ी रोकने से डिब्बों को जलाने तक की वारदातें हुईं और बी.जे.पी. नेताओं पर हमले भी हुए। उप-मुख्यमंत्री अरुणा देवी के क़ाफ़िले पर नवादा शहर के रेलवे क्रासिंग पर भारी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया। वह ख़ुद तो किसी तरह बच गईं लेकिन उनके ड्राईवर को मामूली चोटें आईं । इसी तरह छपरा के विधायक सी.एन. गुप्ता के घर पर भी पत्थरबाज़ी हुई। बेतिया में बिहार के अन्दर बी.जे.पी. के राज्याध्यक्ष संजय जयसवाल के घर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया और इसमें एक पुलिसवाला भी ज़ख़्मी हो गया।
भारतीय जनता पार्टी ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विपक्ष और एन.डी.ए. तो दूर बी.जे.पी. नेताओं तक से बात नहीं की। केन्द्रीय मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह से जब इस विषय में सवाल किया गया तो उनका जवाब था कि वह इस योजना की तैयारी में शामिल नहीं थे। इसलिए उसके बारे में बहुत ज़्यादा नहीं जानते। जब उसे लागू किया जाएगा तब कुछ चीज़ें स्पष्ट हो जाएँगी। अपने ही अहं का शिकार मोदी जी किसी काम को करने से पहले एन.डी.ए में शामिल पार्टियों को विश्वास में लेने की ज़रूरत महसूस नहीं करते। यही कारण है कि जनता दल (यू.) के प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने कहा, “अब जबकि छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, केन्द्र को कोई बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा, क्योंकि वह नौजवानों को अग्निपथ को समझाने में नाकाम हो गया है।” त्यागी ने स्पष्ट किया कि वह सरकारी सम्पत्तियों के नुक़्सान का समर्थन नहीं करते। इससे पहले बिहार में जनता दल के ऊर्जा मंत्री बृजेन्द्र प्रसाद यादव ने कहा था, “हालाँकि हम केन्द्र सरकार की योजना पर टिप्पणी नहीं कर सकते, लेकिन केन्द्र को छात्र नेताओं से बातचीत करनी चाहिए।” जो लोग अपने आपको महान बुद्धिमान समझते हैं वे शराफ़त के साथ किसी से बातचीत नहीं करते, बल्कि ताक़त के बल-बूते पर अपनी मन-मानी करते हैं। लेकिन जब हालात बेक़ाबू हो जाएँ तो उनका दिमाग़ दुरुस्त हो जाता है।
बी.जे.पी. की सहयोगी पार्टी जनता दल (यू.) के राष्ट्राध्यक्ष ने तो बिना लॉग-लपेट के साफ़-साफ़ कह दिया कि “अग्निपथ योजना का एलान करने के बाद बेरोज़गारी के कारण दुख एवं क्षोभ, निराशा और अपने भविष्य के प्रति एक भय का माहौल पाया जा रहा है। केन्द्र को चाहिए कि वह अग्निपथ योजना पर तुरन्त पुनर्विचार करे, क्योंकि यह देश की सुरक्षा से संबंदित मामला है”। बी.जे.पी. के चापलूस और अवसरवादी लोगों में से किसी की मजाल नहीं है कि मोदी का विरोध करे, लेकिन गाँधी परिवार के वरुण गाँधी ने इस नई योजना के ख़िलाफ़ ज़बान खोलने के दुस्साहस का प्रदर्शन किया है। बी.जे.पी. के इस सांसद ने परिणाम से बेपरवाह हो कर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से इस योजना के विषय में खड़े होनेवाले सवालों का जवाब देने का निवेदन किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि नौजवानों को असमंजस की स्थिति से बाहर निकालने के लिए सरकार तुरन्त अग्निपथ से संबंधित पॉलिसी को सामने रखकर अपना पक्ष स्पष्ट करे।
वरुण गाँधी के अनुसार फ़ौज में पंद्रह साल गुज़ारनेवाले फ़ौजियों में भी कॉरपोरेट ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाता ऐसे में मात्र चार साल की मुद्दत के बाद अग्निवीरों का क्या होगा? उन्होंने यह तर्क दिया कि इस योजना के तहत ट्रेनिंग पर ख़र्च होनेवाली रक़म व्यर्थ हो जाएगी, क्योंकि फ़ौज तो प्रशिक्षण प्राप्त जवानों में से सिर्फ़ 25 प्रतिशत का इस्तेमाल कर सकेगी। इससे रक्षा बजट पर अनावश्यक बोझ पड़ेगा। हर साल भर्ती किए जानेवाले 75 प्रतिशत जवान बेरोज़गार हो जाएँगे। यह संख्या हर साल बढ़ती चली जाएगी। इससे जवानों में और ज़्यादा बेचैनी पनपेगी। वर्तमान सरकार की हालत लातों के भूत की-सी है। वह शराफ़त की ज़बान नहीं समझती। बी.जे.पी. के अंदर किसी में मोदी की आलोचना करने की हिम्मत नहीं है। सुब्रमण्यम स्वामी आदि कुछ बोलते हैं तो उन्हें नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
वर्तमान सरकार में सहयोगी दलों के मश्वरे को किसी योग्य नहीं समझा जाता और विपक्ष का मज़ाक़ उड़ाया जाता है। ऐसे में विरोध प्रदर्शन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। पहले मुसलमान सड़कों पर आए। मुस्लिम दुनिया ने उनका नोटिस लिया और सरकार होश में आई। अब नौजवान झिंझोड़कर सरकार को जगाने और ग़लती का एहसास कराने पर मजबूर हैं। इस विरोध प्रदर्शन का पहला फ़ायदा तो यह हुआ कि केन्द्र सरकार ने‘अग्निपथ’ फ़ौजी भर्ती योजना के लिए उम्र की हद 21 साल से बढ़ा कर 23 साल कर दी, क्योंकि पिछले दो सालों में कोई भर्ती नहीं हुई है, फिर भी उम्र की हद में सिर्फ़ एक बार वृद्धि की गई है, इसके बाद उम्र की हद 21 साल ही रहेगी, लेकिन जब दो सालों से भर्ती नहीं हुई तो दो साल तक छूट मिलनी चाहिए थी।
सरकार के इस लॉलीपॉप से भी बात नहीं बनी और बिहार बंद भी हो गया तो केन्द्र सरकार ने ‘अग्निवीरों’ को केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सी.ए.पी.एफ़) और असम राइफ़ल्ज़ में 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध करने का एलान कर दिया। यह वही पुरानी रीति है जो नोटबंदी और जी.एस.टी. के समय सामने आई थी कि हर-रोज़ एक नया फ़ैसला या संशोधन होता था। यह सरकार की अयोग्यता का मुँह बोलता सुबूत है। ये लोग बिना सोचे-समझे जल्दबाज़ी में मूर्खतापूर्ण फ़ैसले करते हैं और इसका ख़मियाज़ा पूरे राष्ट्र को भुगतना पड़ता है। ऐसे में जो सरकारी सम्पत्ति का या जानी नुक़्सान हो रहा है इसके लिए सरकार ज़िम्मेदार है। योगी जी तो सम्पत्ति के नुक़्सान की भरपाई की बात ही भूल गए हैं, लेकिन राहुल गाँधी ने याद दिलाया है कि :“न रैंक न पेंशन, न दो साल से कोई भर्ती, न 4 साल के बाद निश्चित भविष्य, न सरकार की फ़ौज के प्रति इज़्ज़त। देश के बेरोज़गार नौजवानों की आवाज़ सुनिए, उन्हें ‘अग्निपथ’ पर चलाकर उनके धैर्य की ‘अग्नि-परीक्षा’ मत लीजिए, प्रधानमंत्री जी!” मोदी जी की भलाई इसी में है कि राहुल का यह मश्वरा मान लें वर्ना ‘माफ़ी वीर’ बनकर किसान क़ानून की तरह उसे भी नाक रगड़कर वापस लेना होगा।
——(अनुवाद : गुलज़ार सहराई)

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