राँची से प्रयागराज तक सितमगरों की नज़र से नज़र मिलाके जिए

राँची से प्रयागराज तक
सितमगरों की नज़र से नज़र मिलाके जिए

डॉ। सलीम ख़ान
भाजपावाले राम राज्य स्थापित करने चले थे, मगर बुलडोज़र राज ले आए। बुलडोज़र के बारे में भाजपा अदालत में जो कहती है, उसे गोदी मीडिया एक अलग रंग देता है। कोर्ट में सरकारी विभाग द्वारा अवैध अतिक्रमण को तोड़ने की बात कही जाती है। मीडिया नेताओं के दंगाइयों को सबक़ सिखाने का राग अलापता है। अवैध अतिक्रमण हटाने में न भेदभाव करना सही है और न इसे दंगों से ही जोड़ा जाना चाहिए। दंगाइयों को दंड देने का अधिकार विधायिका या प्रशासन का नहीं, बल्कि न्यायपालिका का है। वह पहले मामलों की छान-बीन करके देखती है कि आरोप सही हैं या नहीं, और अगर हैं भी तो क्या उसकी सज़ा बुलडोज़र चलाना है? ऐसे में क़ानून को धता बताते हुए किसी इमारत को ध्वस्त करने का अधिकार प्रशासन या सरकार को है ही नहीं। इस मामले को एक उदाहरण से समझें। 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो अवैध टावरों को गिराने का आदेश दिया। इसको 9 महीने से ज़्यादा का समय हो गया है, लेकिन बाबाजी का बुलडोज़र अभी तक वहाँ नहीं पहुँचा है। क्या उनको पूंजीपतियों से डर लगता है या उनका कोई हित जुड़ा है जो वे उसके निकट जाने की हिम्मत नहीं करते?
उत्तर प्रदेश के नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रितु माहेश्वरी ने न्यायपालिका की मंज़ूरी के बावजूद विध्वंस कार्यों के लिए 15 विभागों की एन.ओ.सी. प्राप्त की। जबकि प्रयागराज में जावेद मुहम्मद का मकान गिराने के लिए न अदालत की स्वीकृति और न किसी विभाग से अनुमति लेना ज़रूरी समझा गया, क्योंकि वे सभी शनिवार और रविवार को बंद रहे। अदालत ने 22 मई को विध्वंस के लिए समय सीमा निर्धारित की, जिसे 30 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था, लेकिन जावेद के साथ ऐसा नहीं किया गया। इस मामले में प्रशासन ने न तो निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया और न ही दस्तावेज़ों के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश की कि घर का मालिक कौन है? अगर यह किया जाता तो पता चल जाता कि ध्वस्त किया जानेवाला मकान जावेद का नहीं, बल्कि उनकी पत्नी का है। उनको शादी से पहले उनके पिता ने उन्हें अपनी पुश्तैनी संपत्ति भेंट कर दी थी, जो आज भी उनके नाम पर है। उसपर जावेद का कोई क़ानूनी अधिकार नहीं है। इसके बावजूद प्रशासन ने परवीन फ़ातिमा की जगह जावेद मुहम्मद के नाम पर पुरानी तारीख़ का नोटिस भेज दिया।
इससे पहले 10 मई को नोटिस भेजा गया था और 24 मई को सुनवाई के बाद 25 मई को आदेश जारी किया गया था, लेकिन नए नोटिस में किसी सर्कुलर या आदेश का ज़िक्र नहीं है। 10 जून के नोटिस को एक दिन बाद दरवाज़े पर चिपका दिया गया। जावेद मुहम्मद पर मीडिया में व्हाट्सएप मैसेज फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है, लेकिन एफ़.आई.आर. में इसका ज़िक्र नहीं है। जावेद मुहम्मद वेलफ़ेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के पदाधिकारी हैं और सभी शांति समितियों और अन्य सामाजिक गतिविधियों में आगे-आगे रहे हैं। उनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है और कोई ठेके आदि का काम भी नहीं करते, इसलिए उनको अचानक मास्टरमाइंड बना देना केवल दुश्मनी से प्रेरित है। यही कारण है कि जावेद मुहम्मद के घर पर चलनेवाले बुलडोज़र की सभी राजनैतिक दल निंदा कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे न्याय विरोधी क़रार दिया। उन्होंने सवाल किया कि यह कहाँ का न्याय है कि जिनके कारण देश के हालात बिगड़े और दुनिया-भर में रुसवाई हुई वे तो सरकारी सुरक्षा में हैं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को बिना मुक़द्दमे और जाँच के बुलडोज़र से सज़ा दी जा रही है। इसकी इजाज़त न हमारी सभ्यता देती है, न धर्म, न क़ानून, न संविधान देता है।
अखिलेश के अनुसार, भाजपा सरकार में पूरी दुनिया में उत्तर प्रदेश की बदनामी हुई, क्योंकि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लोकतांत्रिक अधिकार का अपमान किया गया। उन्होंने राज्य के राजपाल से स्वयं संज्ञान लेकर शांति स्थापित करने तथा सरकार की मनमानी तथा सत्ता के दुरुपयोग पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया। अखिलेश ने मुख्यमंत्री राज्य सरकार पर क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता को छिपाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ पर झूठी कहानियाँ गढ़कर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने भी सरकार पर एक ख़ास वर्ग को निशाना बनाने का आरोप लगाया। मायावती ने अपने ट्वीट में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार अन्यायपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शनों को कुचलने और भय और आतंक का माहौल बनाने का अन्यायपूर्ण प्रयास कर रही है। उन्होंने मकानों को ध्वस्त करके पूरे परिवार को निशाना बनाने की कार्यवाई का संज्ञान लने के लिए अदालत से गुहार लगाई। मायावती ने सवाल किया कि समस्या की जड़ नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करके क़ानून के शासन का मजाक़ क्यों उड़ाया जा रहा है? उनके नज़दीक उन दोनों को अभी तक जेल न भेजना एक अत्यंत पक्षपातपूर्ण तथा दुर्भाग्यपूर्ण हरकत है। उन्होंने नियम-क़ानून को दरकिनार करके बुलडोज़र की विध्वंसक कार्रवाइयों में निर्दोष परिवारों के कुचले जाने और निर्दोषों के घरों को ध्वस्त किए जाने की निंदा की।
योगी सरकार के इस अत्याचार के ख़िलाफ़ देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। दिल्ली के अंदर, यू.पी. भवन के सामने स्टूडेंड ऑफ़ इस्लामिक आर्गनाइज़ेशन (एस.आई.ओ.) ने प्रदर्शन की घोषणा की और जे.एन.यू. में छात्र संगठन ने आफ़रीन फ़ातिमा के समर्थन में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों ने जब विरोध की घोषणा की तो प्रशासन ने रीडिंग रूम को बंद करके विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया। प्रयागराज में वकीलों के संघ ने अपनी रिट याचिका मुख्य न्यायाधीश को भेजी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सी.डी. माथुर ने कार्रवाई को पूरी तरह से अवैध क़रार दिया, क्योंकि बुलडोज़र का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसलिए किसी भी सरकार का यह क़दम अदालत की अवमानना है। एक सवाल यह है कि आख़िर राज्य सरकारें इस तरह से क़ानून का उल्लंघन क्यों करती हैं? इसका एक कारण अपनी असफलता को छिपाना है। नूपुर की अभद्र टिप्पणी के बाद दुनिया भर में जो बदनामी हुई है, उसकी ओर से जनता का ध्यान भटकाना है।
योगी की दबंग छवि कि उनके डर से कोई विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकता, बुरी तरह प्रभावित हुई है। उसको बहाल करने के लिए यह दबंगई दिखाई जा रही है और दावा किया जा रहा है कि दंगाइयों को सबक़ सिखाया जाएगा, लेकिन यू.पी. में सबसे बड़ा दंगा तो आशीष मिश्रा ने किया और दिनदहाड़े किसानों को अपनी कार से कुचल दिया, लेकिन योगी का बुलडोज़र उसके घर की ओर नहीं बढ़ा, क्योंकि आशीष के पिता अजय मिश्रा गृह राज्य मंत्री हैं। इस तरह के अत्याचारों के कारणों में से एक लोगों को ख़ुश करना होता है। उत्तर प्रदेश में जब विकास दुबे की कार पलटी या हैदराबाद में बलात्कारियों का एनकाउंटर किया गया, तो लोगों ने मिठाई बाँटकर जश्न मनाया, लेकिन जब जस्टिस सिरपुरकर आयोग ने यह रहस्योद्‍घाटन किया कि 2019 का दिशा एनकाउंटर फ़र्ज़ी था और इस संबंध में हत्या का मामला दर्ज करने की सिफ़ारिश कर दी, जिसमें तीन किशोर आरोपियों समेत चार लोगों को मार दिया गया था तो सबके चेहरे उतर गए।
योगी सरकार लोगों को डरा-धमकाकर विरोध करने से रोकना चाहती है, लेकिन मुसलमानों के लिए यह असंभव है। इसका ताज़ा उदाहरण राँची में पुलिस की गोली से शहीद होनेवाले 16 वर्षीय मुदस्सिर की साहसी माँ है, जिन्होंने अपने बेटे की शहादत पर ऐसा साहसी बयान दिया, जिसकी इस्लाम के दुश्मन कभी कल्पना नहीं कर सकते थे। अपने इकलौते बेटे की मौत पर बहादुर माँ ने मुसलमानों के दोष देने या मुदस्सिर के विरोध का हिस्सा न होने का रोना-रोने के बजाय सवाल किया, “बच्चे की ग़लती क्या थी? क्या पुलिस को इजाज़त है कि अगर कोई अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाए तो गोली मार दो…… ‘इस्लाम ज़िन्दाबाद’ बोल देने पर पुलिस को गोली मारने का हक़ किसने दिया? सरकार कहाँ सो रही है?” जिस समाज में ऐसी माएँ हों, जो दुख की इस घड़ी में भी मुखर रूप से घोषणा करें कि “इस्लाम ज़िन्दाबाद’ था, इस्लाम ‘इस्लाम ज़िन्दाबाद’ है और ‘इस्लाम ज़िन्दाबाद’ रहेगा, कोई भी सरकार या विश्व शक्ति रोक नहीं सकती है। मेरा 16 साल का बच्चा अपने इस्लाम के लिए शहीद हुआ है।” उसे कौन डरा सकता है? इन्हीं अपार साहस की मिसालों ने इस्लाम का परचम बुलंद कर रखा है।
शहीद मुदस्सिर की माँ को गर्व है कि उनके बेटे ने पवित्र पैग़म्बर (सल्ल.) के लिए अपनी जान दे दी। उसने शहीद का दर्जा पाया है, उन्हें इसका कोई दुख नहीं है। इस बहादुर माँ ने डरने के बजाय ज़ोर देकर कहा कि जिसने भी उसके बेटे को मार डाला उसे सज़ा मिलनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि आप लोग सेटिंग किए हुए थे कि जुलूस निकलेगा तो फ़ायरिंग कर देना है। सरकार ने यह सेटिंग कर रखी थी। वह सारा इलज़ाम सरकार को देती हैं और कहती हैं कि यह मोदी सरकार की साज़िश है। अगर वह अच्छा होता तो इतना कुछ नहीं होता। एक जागरूक माँ सवाल करती है कि इतनी फ़ोर्स क्यों रखी गई थी, हालात को संभालने के लिए या गोली चलाने के लिए? उन्होंने पूछा कि अगर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल तैनात किया गया था तो फिर फ़ायरिंग क्यों की गई? जिस मुस्लिम समाज में एक अनपढ़ माँ इतनी बहादुर हो उसको मोदी और योगी क्या डराएँगे? मुदस्सिर की माँ ने अपने बयान से साहिर लुधियानवी के इन अशआर की व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत की।
न मुँह छुपा कि जिए, हम न सर झुका के जिए
सितमगरों की नज़र से नज़र मिला के जिए
अब एक रात अगर कम जिए तो कम ही सही
यही बहुत है कि हम मशअलें जला के जिए
——(अनुवादक : गुलज़ार सहराई)

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