30 मई 1866 —विश्व विख्यात इस्लाम धर्म की अग्रणी संस्था दारुल उलूम की देवबन्द में स्थापना
कमल देवबन्दी–लेखक,विचारक,समीक्षक।
30 मई 1866 —विश्व विख्यात इस्लाम धर्म की अग्रणी संस्था दारुल उलूम की देवबन्द में स्थापना आज ही के दिन हुई थी।आज कई समाचार पत्रों ने उक्त सम्बन्ध में समाचार और संक्षिप्त लेख लिखे हैं—जो आधी-अधूरी जानकारी और तथ्यों पर आधारित हैं——–?दारुल उलूम की स्थापना में हाजी सय्यद आबिद हुसैन,मौलाना रफीउद्दीन,मौलाना जुल्फकार और मौलाना फजलुर्रहमान उस्मानी की विचार धारा प्रमुख रूप से शामिल थी—जिसको सदैव लेखक,विचारक,इतिहासकार और पत्रकार नज़रअन्दाज़ करते हैं।दारुल उलूम के प्रथम उस्ताज़ मुल्ला महमूद और प्रथम शागिर्द मौलाना महमूद हसन देवबन्दी थे जो बाद में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी,रेशमी रुमाल आंदोलन के प्रमुख संचालक और हज़रत शैख़ उल हिन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए।मुल्ला महमूद की क़ब्र सैनियों की सराय के क़रीब मस्जिद”कहुनी मस्जिद”(खूनी मस्जिद)में है।
दारुल उलूम की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य इस्लाम धर्म की शिक्षा के साथ-साथ,अंग्रेजों के विरुद्ध लामबंदी,देशभक्ति,एकता,भाई चारे का सन्देश भी देशवासियों को दिया।दारुल उलूम की स्थापना केवल और केवल देवबन्द के बज़ुर्गों की देन है।इस तथ्य को सदैव नाकारा जाता रहा है।
दारुल उलूम ने निःशुल्क शिक्षा,निशुल्क आवास,निशुल्क भोजन,छात्रवर्ती,निशुल्क लिहाफ,मिट्टी तेल,चीनी,रात्रि शिक्षा,आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराई।जिसको आज वर्ल्ड बैंक जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं गर्व के साथ चला रही हैं।यहां यह बात उल्लेखनीय है कि “देवबन्दी”कोई विचारधारा नही है—-यहां के उल्मा क़ुरआन,हदीस,शरई अहकामात(उसूलों)के पाबंद हैं और वह 4 बड़े इमामों को मानते हैं।इसलिए शब्द”देवबन्दी”का प्रयोग उचित नही है।
अपनी स्थापना से अब तक दारुल उलूम ने एक लाख के क़रीब मौलवी,आलिम,मुफ़्ती,अनुवादक,भाष्यकार,लेखक,पत्रकार,शायर,धर्मप्रचारक विश्व स्तर पर दिए।दारुल उलूम की स्थापना के बाद देश-विदेश में हज़ारों मदरसों की स्थापना हुई।जिन्होंने धार्मिक शिक्षा के साथ देश सेवा,देश प्रेम का पाठ भी पढ़ाया।
दारुल उलूम ने शिक्षा के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।1400 हज़ार उल्मा की शहादत,रेशमी रुमाल आंदोलन,नमक आंदोलन,असहयोग आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही।बड़ी संख्या में उल्मा ने काले पानी की जेलों में भी अंग्रेजों के ज़ुल्मों-सितम बरदाश्त किए।दारुल उलूम ने पाकिस्तान विभाजन का खुला विरोध किया।
दारुल उलूम की व्यवस्था और संचालन हेतु”मजलिसे शूरा”नामक एक कमेटी है।जिसमे वर्तमान में 20 सदस्य हैं।पूर्व में 114 सदय सहयोग दे चुके हैं।दारुल उलूम के अब तक 10 मोहतमिम,14 नायब मोहतमिम,15 शेख उल हदीस,11 नाज़िमे तालीमात,12 उच्च स्तर के मुफ़्ती सहयोग दे चुके हैं।दारुल उलूम के संचालन हेतु लगभग 30 अलग-अलग विभाग हैं।धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ वर्तमान में इंग्लिश,कम्प्यूटर,उर्दू-अरबी लेखन,सिलाई,जिलदबन्दी के विभाग हैं।प्रचार-प्रसार हेतु उर्दू-अरबी में मासिक पत्रिका और समाचार पत्रों का प्रकाशन निरन्तर जारी है।150 वर्ष से अधिक का सुनहरा इतिहास कम समय और कम स्थान लिखना मुश्किल है—–फिर भी सही जानकारी आप तक रखने का मात्र यह प्रयास है।
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