30-मई हिंदी पत्रिकारिता दिवस पर विशेष-

30-मई हिंदी पत्रिकारिता दिवस पर विशेष——–

कमल देवबन्दी—-लेखक,विचारक।

30 मई का दिन आपको यह याद दिलाने के लिए हर वर्ष आता है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता के बड़े तक़ाज़े,उम्मीदें आपसे हैं।सरल भाषा मे पत्रकारिता को अगर परिभाषित किया जाए तो”सरकार,सिस्टम और जनता के बीच आम जनता की ज़रूरतों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को पत्रकारिता कहते हैं”।इसका झुकाव सदा—ग़रीब, पिछडे,शोषित,पीड़ित समाज की तरफ होना चाहिए।क्यूंकि पत्रकार औऱ पत्रकारिता ही—उनकी आवाज़ है और सरकार को सचेत करती है।आज़ादी से पहले अंग्रेजों और उनके ज़ुल्मों-सितम के विरुद्ध इस देश मे हज़ारो पत्रकारोंं ने फांसी के फंदे को हक़ और सच के लिए क़बूल किया।उस समय यह देश सेवा थी और क़लम और सियाही के शब्दों का मेल देश भक्ति और जुनून से कम नही था।
मगर अफसोस धीरे-धीरे आज़ादी के बाद यह ना सिर्फ साम्प्रदायिक बल्कि सत्ता में बैठी बेईमान सरकारों की मुंह की बोली बन चुकी है।आज निरक्षर,स्तरहीन,बेरोज़गार पत्रकार सरकार,सरकारी जनप्रतिनिधियों, पुलिस,धन्ना सेठों की बोली बोलती है।यह सुबह सवेरे हज़ारों वरिष्ठ नेता,कार्येकर्ता,चोर,डकैत, देशद्रोही,मुल्ला-मौलवी,आतंकी अड्डे,फर्ज़ी फतवे,तलाक़ और बलात्कार की कहानियां घडते हैं।धर्म,जाति और सम्प्रदाय के नाम पर बाँटते हैं———इनके लिखे पर लोग आज भी अंधविश्वास करते हैं।
प्रिंट मीडिया के बाद इलेक्टॉनिक मीडिया और अब सोशल मीडिया ने स्तरहीनता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं—-पत्रकारिता का यह सबसे घटिया और सस्ता माध्यम बन गया है— विश्वस्नीता में इसका पैरा मीटर शून्य है।इस माध्यम से लिखने वाले सबकी छवि उज्वल कर रहे हैं—-विशेष रूप से पुलिस की।इनकी पुलिस के प्रति मानसिक और आर्थिक ग़ुलामी जग ज़ाहिर है।
ऐसा नही इन स्तरहीन हालात में सुधार नही हो सकता—समाचार पत्रों के धन्ना सेठों मालिकों को——अपने मीडिया कर्मियों के लिए तिजोरियों के उचित दरवाज़े खोलने होंगे।योग्यता और अनुभव को प्राथमिकता देनी होगी।उचित वेतन—-पत्रकारों को सम्मान देगा होगा—और पत्रकारों को भी अपनी छवि अपने कर्म-धर्म के बल पर मज़बूत करनी होगी।निश्चित ही विश्व स्तर पर आज पत्रकारिताआग दरया है और तैर के जाना है।
बहरहाल—-अंत मे 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस गणेश शंकर विद्यार्थी(1890-1931)की याद में मनाया जाता है।26 अक्टूबर 1890 को अतरसुइया,प्रयाग उत्तर प्रदेश में जन्मे गणेश उर्दू,अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा मे दक्ष थे।उन्होंने कर्मयोगी,स्वराज्य,हितवार्ता,प्रताप,प्रभा नामक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे।वह अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक आंदोलन में प्रमुख भूमिका में रहे।25 मार्च 1931 को कानपुर दंगो में उनकी हत्या हुई।समाज के प्रति उनकी अमूल्य कुर्बानी पर यह दिन पत्रकारिता और पत्रकारों के लिए विशेष है।

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