इसराईल एक आतंकी राज्य

इसराईल एक आतंकी राज्य
डाक्टर सलीम खान

इसराईल से हमदर्दी रखने वाला विश्व मीडिया जिसमें भारत के कई अख़बार और चैनल्स भी शामिल हो गए हैं हालिया टकराव के लिए हम्मास के राकेट हमले को जिम्मेदार ठहराते हैं । जबकि हम्मास का दावा है कि ये कार्रवाई बैतुल-मुकद्दस में मुसलमानों की मुकद्दस मस्जिद अकसा पर इसराईल के हमले और आतंक का बदला है। बैतुल-मुक़द्दस में इसराईली पुलिस और फ़िलिस्तीनी शहरियों में ताजा झड़पों की शुरुआत उस समय हुई थी जब पूर्वी बैतुल-मुक़द्दस में यहूदी आबादकारों की ओर से वहां बसने वाले फ़िलिस्तीनी खानदानों को बेदखल करने की कोशिश की गई। इस तरह मुसलमानों की पिहलेा-ए अव्वल यानी मस्जिद अक़सा और इस के आस-पास का इलाका रमजान में हिंसक झड़पों का मर्कज बन गया। पूर्वी बैतुल-मुक़द्दस के इलाके शेख़ जर्राह में कई दिनों से जारी हिंसा का ये कारण था। यहां आबाद फ़िलिस्तीनी खानदानों को यहूदी आबादकारों की ओर से जबरी बेदखली का सामना है और फ़िलिस्तीनी चूँकि लगातार विरोध कर रहे हैं जिस को सुरक्षा बल कुचलने की कोशिश करते हैं।
हम्मास के राकेट दाग़े जाने से 27 दिन पहले 13 अप्रैल को इसराईल का कौमी यादगार दिन था। ये देश बनाने के लिए अपनी जान का नजराना पेश करने वाले फौजियों की याद में मनाया जाता है । इस मौका पर इसराईल के राष्ट्रपति रियोविन रिवलिन पुलिस के साथ मस्जिद उकसा में दाख़िल हो गए। रमजानुल-मुबारक की इब्तिदा में ये मुसलमानों को गुस्सा दिलाने की एक कोशिश थी। इस पर वहां मौजूद लोगों ने विरोध किया। बात जब मारपीट तक पहुंच गई तो पुलिस ने लाउड स्पीकर के सारे तार काट दिए। इस के बाद आतंकी कौम परस्त यहूदियों ने जुलूस निकाल कर मस्जिद अकसा में आकर मजहबी रसूम अदा करने का ऐलान किया । उस दिन यरूशलम पर कब्जे का जश्न मनाया जाता है। मुसलमानों ने उनको रोकने का फैसला किया। सरकार ने पहले तो यहूदियों को समझाया कि वे मुस्लिम मोहल्लों में न जाएं या अपनी संख्या कम करें लेकिन वे नहीं माने तो उस के तीन दिन पहले जुमातुल-विदा को निहत्थे मुसलमान नमाजियों पर रबर की गोलीयां बरसा कर 180 लोगों को जख्मी कर दिया । इसराईल को आशा थी कि अगर मस्जिद पर सुरक्षा बल तैनात कर दिए जाएं तो मुसलमान घरों में दुबक कर बैठ जाएंगे और जुलूस अपनी मनमानी कर सकेगा, लेकिन हम्मास ने इन दस्तों को हटाने के लिए 6 बजे तक का समय दिया और इस के पूरा होने पर राकेट बरसाए तो क्या गलत किया ? और इस के लिए असल जिम्मेदार कौन है।
असल में इस फसाद की बुनियादी वजह मध्य पूर्व में नाजायज तरीक़ा पर इसराईल की स्थपना है । इस का दूसरा कारण सन 1967 मैं होने वाली जंग के बाद से पूर्वी बैतुल-मुक़द्दस पर इसराईल का नाजायज कब्जा है । इसराईल के इस इकदाम को विश्व बिरादरी की अक्सरीयत ने स्वीकार नहीं किया है और संयुक्तराष्ट्र इस अमल को गैरक़ानूनी करार देता है। इसराईल की ये हठधर्मी है कि वो यरूशलम को अपना राजधानी कहता है। इसराईल की इस धांधली को मुसलमानों ने कभी भी स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनके नजदीक अल-क़ुद्स फ़िलिस्तीन की राजधानी है। मुसलमान उस के लिए संघर्ष करते रहे हैं और इस को कुचलने के लिए इसराईल बदतरीन मजालिम करता रहा है। ह्यूमन राईट्स वाच ने भी अपनी तहकीक व तफतीश के बाद इस बात की गवाही दी है कि मकबूजा इलाकों में फ़िलिस्तीनीयों और अपने अरब शहरियों के खिलाफ इसराईल नसली इमतियाज और अत्याचार कर रहा है।
ह्यूमन राईट्स वाच ने अपनी नई रिपोर्ट में इसराईल पर अपने अरब शहरियों समेत मकबूजा इलाकों के फ़िलिस्तीनीयों पर यहूदी वर्चस्व को क़ायम रखने का इल्जाम लगाया है। मौजूदा दुनिया के अंदर राज्य-पोषित नस्लभेद मानवता के खिलाफ एक अपराध समझा जाता है। ह्यूमन राईट्स वाच ने अपनी 213 पेज की रिपोर्ट में इसराईली सरकार पर फिलिस्तीनियों के खिलाफ नस्ली अपराध के जो सबूत पेश किए हैं, उनसे जाहिर होता है कि इसराईल पिछले 40 सालों से फिलिस्तीनियों के खिलाफ ये अपराध करता आ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक मकबूजा इलाकों में कुछ बरसों के दौरान स्थानीय अरब और फ़िलिस्तीनी आबादी के खिलाफ हत्या, लूट मार और अन्य अपराधों में बहुत इजाफा हुआ है। इन इलाकों में बसने वाले फ़िलिस्तीनीयों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जाता है।
जनवरी 2021 के दौरान दो अहम लागों को निशाना बनाया गया । इस्लामी तहरीक के रहनुमा सुलैमान अल-अगबारिया को 7 जनवरी के दिन शदीद जख़्मी कर दिया। इस के बाद याफा शहर में ओहदेदार अल-शैख मुहम्मद अबू नज्म को शहीद कर दिया गया। कई साल से जारी इस गैर ऐलानीया नस्लकुशी में हर माह किसी ना किसी फ़िलिस्तीनी के शहीद होने की खबर आती है। इसराईल के अंदर अपराध की दर वैसे भी बहुत ज्यादा है मगर सन 2014 से 2017 तक के आंकड़ों को देखा जाये तो यहूदी आबादी की बनिसबत फ़िलिस्तीनी अरबों के खिलाफ हिंसा और अन्य अपराध में पाँच गुना ज्यादा वृद्धि हुई है। फ़िलिस्तीनी में जब से दूसरी तहरीक इंतिफाजा का आगाज हुआ है देही इलाकों में बसने वाले बाशिंदों की नस्लकुशी बढ़ गई है।
इसराईली पुलिस इस गैंग की हौसला-अफजाई करती है । ह्यूमन राईट्स वाच के मुताबिक 2000 के बाद से मकबूजा अरब इलाकों में 7001 फ़िलिस्तीनियों की नस्ल कुशी की गई। 2021 में एक माह से भी कम में 60 फ़िलिस्तीनियों को शहीद किया गया । साल 2020 के दौरान इसराईली माफिया के हाथों 17 महिलाओं समेत 100 फ़िलिस्तीनियों को शहीद किया जा चुका है। मकबूजा फ़िलिस्तीनी इलाकों में अपराध तीन तरह से फैल रहे हैं। पहला हथियार के इस्तिमाल को आम करके अपराधी ग्रुपों की मदद करना। अपराध के फैलने दूसरी वजह इसराईली पुलिस का अपराध के वाकघ्यिात की तहक़ीक़ात करने के बजाय मुजरिमों को छोड़ देना है और तीसरा ख़तरनाक कारण इसराईल में खुफिया इदारे शाबाक की ओर से फ़िलिस्तीनियों की नुमाइंदा शख़्सियात को शहीद करने की गैर ऐलानीया मुहिम चलाना है।
इस नस्लकुशी के पीछे दो अहम कारण हैं। एक कारण तो पेशावर माफिया है जिसे इसराईली सरकार और सरकारी इदारों की मदद हासिल है और वो उनके इशारे पर फ़िलिस्तीनियों पर हमले करते हैं। दूसरा कारण यहूदी आबादकारों में बाँटा गया बेपनाह हथियार है जिसे वे फ़िलिस्तीनीयों की नस्लकुशी के लिए इस्तिमाल करते हैं। मकबूजा अरब इलाकों में यहूदी आबादकारों पास 5 लाख से ज्यादा हथियार हैं। इसराईली पुलिस को पता है कि कौन अपने हथियार को किस काम में ला रहा है मगर वे इन अपराध पर खामोशी बरतने के मुजरिम हैं । इसराईली सरकार की ओर से इस पर आज तक कोई नोटिस नहीं लिया गया। सवाल ये है कि इसराईली पुलिस अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई से क्यों बचती है?
इसराईली पुलिस ये कह कर अपना दामन झटक लेती है कि फ़िलिस्तीनियों को निशाना बनाए जाने के पीछे माफिया का हाथ है। मगर सवाल ये है कि माफिया सिर्फ फ़िलिस्तीनी अरब आबादी के खिलाफ क्यों सरगर्म है? और प्रशासन उसे क्यों छूट देता है ? हकीकत यही है कि ऐसे अपराधियों की निशानदेही के बाद भी पुलिस उन्हें पकड़ने और उन के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई को जान-बूझ कर नजरअंदाज करती है। मानवाधिकार के झंडावाहक नस्ल कुशी के पिछे कातिल माफिया नहीं बल्कि इसराईल की सरकारी पालिसी और को जिम्मेदार मानते हैं। आतंकवाद की घटनाएं दुनिया भर में होती रहती हैं लेकिन इस में किसी व्यक्ति या गिरोह को आतंकी करार दिया जाता है । सरकार उस के खिलाफ कार्रवाई करती हुई नजर आती है लेकिन अगर ख़ुद सरकार लिप्त हो जाए तो राज्य आतंकवाद कहलाता है। इस बाबत दोहरा पैमाना अपनाया जाता है। मुस्लिम मुल्क में किसी व्यक्ति के आतंकवाद के लिए सरकार को और पश्चिमी देशों में राज्य आतंकवाद को भी व्यक्तिगत कहा जाता है।
आतंकी का ताल्लुक अगर ईसाईयत से हो तो यूरोप और अमरीका में ये उस का व्यक्तिगत अमल करार पाता है। तफतीश के बाद अक्सर ये ऐलान भी कर दिया जाता है इस बेचारे का दिमागी संतुलन ठीक नहीं था, इसलिए नरमी का हकदार है लेकिन अगर वह मुसलमान निकल आए तो उस को कथित इस्लामी आतंकवादी संगठनों से जोड़ कर इस्लाम के खिलाफ एक मोर्चा खोल दिया जाता है। ऐसे बुद्धिजीवी जो इस्लामी जिहाद की ए बी सी से वाक़िफ़ नहीं होते इस्लामी चिंतक बन कर सक्रिय हो जाते हैं और उन्हें कथित उलमा का समर्थन भी मिलने लगता है, लेकिन सरकार को कभी भी आतंकी नहीं कहा जाता। इसराईल के मामले में तुर्क राष्ट्रपति रजब तय्यिब अर्दवान का कुछ लोगों के बजाय इसराईली राज्य को आतंकी राज्य करार देना ह्यूमन राईट्स वाच की रिपोर्ट के मुताबिक सही है । ईरान के रुहानी पेशवा अली खामनाई ने भी सही तौर पर इसराईल को आतंकवादियों का अड्डा करार दिया है। विश्व बिरादरी को अब इसराईली राज्य का घेराव करके इन अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी नहीं तो अत्याचार की यह आग पूरी दुनिया को अपनी लपेट में ले कर रहेगी।

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