कोरोना संकट त्याग और अत्याचार

कोरोना संकट त्याग और अत्याचार

(शिब्ली रामपुरी)

कोरोना संकट के दौर में दो मामलों पर गौर कीजिए. एक मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर का है तो दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है. वैसे तो दोनों मामलों का आपस में कोई लेना देना नहीं है लेकिन इन दोनों मामलों से एक संदेश जो सामने निकल कर आता है उस पर सभी को संजीदगी से ध्यान देने की जरूरत है. बात करते हैं सबसे पहले कानपुर के मामले की जो बेहद ही शर्मसार करने वाली घटना है.उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक बेटे ने अपनी मां को घर से बाहर निकाल दिया दरअसल मां की तबीयत बिगड़ गई तो बेटा अपनी मां को घर से बाहर लेकर गया और उसे वहीं कुछ दूरी पर रहने वाली बहन के दरवाजे पर छोड़ कर चला आया बेटे ने जहां रिश्ते को शर्मसार करते हुए बूढ़ी मां की सेवा करने की बजाय उसे बहन के दरवाजे पर छोड़ दिया तो वहीं बेटी दामाद ने भी अत्याचारी होने का सबूत देते हुए मां को घर में रखने के बजाय उसे वहीं सड़क पर रहने दिया. किसी ने उस बुजुर्ग महिला की वीडियो बनाई और वायरल कर दी. जिस पर पुलिस ने संज्ञान लिया और बुजुर्ग महिला को अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद भी इलाज के दौरान बुजुर्ग महिला की मौत हो गई जांच के बाद पता चला कि बुजुर्ग महिला कोरोना संक्रमित थी. पुलिस के मुताबिक इस मामले में आरोपी पुत्र के खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाएगी. दूसरा मामला गोरखपुर में सामने आया जहां पर अलीनगर की रहने वाली 82 वर्षीय विद्या देवी की तबीयत खराब हो गई लेकिन उनके बेटे श्याम के त्याग और खुद विद्या देवी की हिम्मत ने 12 दिन में कोरोना से जंग जीतने में कामयाबी हासिल कर ली. महज़ 4 दिन में ऑक्सीजन का स्तर 79 से 94 आ गया. विद्या देवी के पुत्र श्याम ने 4 दिन मां के ही कमरे में गुजारे और 24 घंटे लगातार मॉनिटरिंग की और महज एक दिन ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे रखा.इसके अलावा पूरी तरह से उन्होंने घरेलू उपचार किया बेटे की मेहनत और मां की हिम्मत आज दूसरे पीड़ितों के लिए भी मिसाल बन गई है हैरान करने वाली बात यहां यह भी है कि बेटा श्याम 4 दिन बिना सोए सिर्फ ऑक्सीजन के स्तर को ही देखता रहा. पहले मामले में जहां बेटे और बेटी की वजह से एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो गई क्योंकि यदि उनको समय पर उपचार मिल जाता तो हो सकता था कि वह जीवित रहती तो वहीं दूसरी और एक बेटे की हिम्मत ने 82 साल की बुजुर्ग महिला को मात्र 12 दिन में कोरोना से निजात दिला दी. इन दोनों घटनाओं का जिक्र इसलिए जरूरी हो जाता है कि आज कोरोना संकट के दौर में जहां हर कोई परेशानियों से गुजर रहा है वहीं सोशल डिस्टेंसिंग यानी शारीरिक दूरी बरतने की बजाय लोगों ने दिलों से दूरी बना ली है जो कि बेहद ही अफसोस की बात है. क्या इससे बड़ा कोई और दुर्भाग्य और अफसोस हो सकता है कि एक बेटा और बेटी अपनी मां से सिर्फ इसलिए दूरी बना ले और उसको सड़क पर बेसहारा हालत में छोड़ दें कि वह बीमार है. यह किसी भी तरह से इंसानियत को शर्मसार करने वाला है और ऐसे पुत्र और पुत्रियों के खिलाफ जो भी कानूनी कार्रवाई होती हो वो की जानी चाहिए. वहीं दूसरी और गोरखपुर के श्याम जैसे बेटे आज के श्रवण कुमार का दर्जा रखते हैं कि जो तमाम संकट के दौर में भी अपनी मां का पूरा ख्याल रखते हैं और अपनी हिम्मत मेहनत से मां को इतना मजबूत करते हैं कि एक बूढ़ी 82 साल की महिला सिर्फ 12 दिन में कोरोना से जंग जीत जाती है. श्याम ने अपनी बूढ़ी मां विद्या देवी का उपचार चिकित्सकों द्वारा बताए गए सलाह और उपचार से किया. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वह दौर है कि जब हमें एक दूसरे के सुख दुख में काम आना चाहिए और पड़ोसी हो या रिश्तेदार या कोई भी हो जिस तरह भी जिसकी सहायता हो उसकी सहायता के लिए हम सबको इंसानियत का परिचय देते हुए मदद को आगे आना चाहिए. क्योंकि वर्तमान समय बहुत नाजुक है सिर्फ सरकार को जिम्मेदार ठहराने या सरकार को कोसने से कुछ भी होने वाला नहीं है. हमारी जो जिम्मेदारी है हमें उस पर गंभीरता से ध्यान देने और उसे पूरी ईमानदारी से निभाने की जरूरत है क्योंकि आज जिस हालात से सामने वाला गुजर रहा है ईश्वर ना करे वह हालात कल को हमारे सामने पैदा हो गए तो फिर क्या होगा इसी सोच को हम सबको अपने दिल और दिमाग में रखने की जरूरत है.

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