ईवीएम: नया अवतार नए चमत्कार

ईवीएम: नया अवतार नए चमत्कार
डाक्टर सलीम खान

’ईवीएम का पूरा नाम म्समबजतवदपब टवजपदह डंबीपदम था लेकिन असम में इस के नए अवतार का जन्म हो गया है। कलियुग के इस अवतार का मुखफ्फफ तो अब भी ईवीएम है मगर पूरा नाम म्अमतल टवजम वित उम यानी सारे वोट मेरे लिए है। ये कोई अनोखी बात नहीं है। हिंदू समाज में जब कोई लड़की शादी के बाद ससुराल में आती है इस को नया नाम यानी जदीद तशख्ख़ुस से नवाजा जाता है। इसलिए कई खवातीन अपना तआरुफ इस तरह कराती हैं कि शादी से पहले मेरा नाम शांति था मगर अब क्रांति है। ये सिर्फ नाम की नहीं काम की भी तबदीली है। असम में चूँकि बीजेपी की सरकार के तहत ये पहला इंतिखाब है इसलिए ये नई-नवेली दुल्हन फिलहाल ईवीएम मशीन पर कहर बरसा रही है।बहू की छोटी मोटी गलती को तो नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन अगर वो फाश गलती करने लगे तब तो ससुराल के साथ साथ मैके वाले भी परेशान हो जाते हैं मसलन अगर किसी घर में पाँच अफराद हो और बहू दस अहिले खाना को खाना खिला दे तो लोग ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि कहीं उस की मशीन पास पड़ोस के लोगों को भी अपने खानदान के अफराद में शुमार तो नहीं करने लगी?
असम में फिलहाल ऐसा ही कुछ हो रहा है । एक जमाने में मोतबर तरीन कौमी जरीदे के न्यूज चैनल व पोर्टल ‘आज तक’ का शुमार भी अब गोदी मीडिया में होने लगा है। इस में शाया होने वाली एक खबर के मुताबिक असम में देमा हसाओ जिला के अंदर एक पोलिंग बूथ पर कुल 90 राय देहिंदगान वोट देने के मुस्तहिक थे।इसलिए अगर वहां सिर्फ 9 लोग अपने हक राय दहिंदगी का इस्तिमाल करते तो ये नतीजा निकाला जाता कि10 फीसद वोटिंग हुई । उस के बाद मैदानी नामा निगार अवाम से मिलकर इंतिख़ाबी अमल में उनकी अदम दिलचस्पी का पता लगाते और माहिरीन उस का तजजिया करके मजीद तफसील से बताते कि ऐसा क्यों हुआ? हैरत या बे-यक़ीनी का इजहार कोई नहीं करता लेकिन यहां तो उल्टा हो गया । इस ख़ुश-क़िस्मत पोलिंग बूथ पर ज्यादा से ज्यादा 90 के बजाय 171 वोट पड़ गए । अगर कोई तालिब-इल्म 90 नंबर के पर्चे में 171 नंबर हासिल कर लेता तो मोदी जी उस को नोबल ऐवार्ड के मुकाबले टैगोर ऐवार्ड से नवाज देते लेकिन ये कारनामा अंजाम देने वाले बेचारे इलेक्शन कमीशन पर आफत आगई । पाँच पोलिंग आफसरान को मुअत्तल करने के बाद इस पोलिंग बूथ पर दुबारा वोटिंग कराने का फैसला करना पड़ा।
देमा हसाओ के जिला इलेक्शन अफ्सर पाल बरोह ने ये इकदाम इसलिए किया क्योंकि कमीशन के मुताबिक इस मर्कज पर सिर्फ 74 फीसद वोटिंग हुई । यानी 100 में 74 तो जुमला 90 वोटर्स में 66 वोट पड़ने चाहिए थे लेकिन मशीन बता रही है कि इस के पेट में 171 वोट हैं । आम तौर पर जब मुर्गी अंडे सेंकती है तो दो-चार खराब निकल जाते हैं यानी 9 में चार पाँच चूजे निकल पाते हैं । इसी तरह मुख़्तलिफ वजूहात से कई वोट कलअदम करार पाते हैं । इस पर तनाजा भी होता है और दुबारा गिनती के बाद नताइज का ऐलान किया जाता है। देमा हसाओ के इस मामले में अब आला सतही जांच का हुक्म दे दिया गया है। बईद नहीं दो-चार साल की तफतीश के बाद ये इन्किशाफ हो कि मुर्गी के चंद अंडों से जुड़वाँ चूजे और कुछ के अंदर तीन चार निकल आए इसलिए उनकी तादाद 66 से बढ़कर 171 हो गई। या ये पता चले कि वोटिंग 74 फीसद नहीं बल्कि 190 फीसद हुई थी मगर टाइपिंग के सबब 74 फीसद लिख दी गई । ये सवाल अगर सिफर के मूजिद और मारूफ रियाजी दां आर्या भट्ट से किया जाये कि 90 का 190 फीसद कितना होता है तो वो जवाब देंगे 171 होता है । इस तरह ये अदद सही हो जाएगा।
मोदी युग में अगर कोई सवाल करे कि सद फीसद से ज्यादा वोटर्स कैसे मुम्किन हैं तो इस का जवाब है ‘‘मोदी है तो मुम्किन है’’ नेपोलीयन की मानिंद लफ्ज नामुमकिन वजीरे आजम की लुगत से भी इसी तरह फरार हो गया है जैसे वो ख़ुद शादी के बाद घर से भाग गए थे । बीजेपी अगर दुबारा असम के अंदर इक्तिदार में आजाए तो तहकीक व तफतीश का नतीजा कुछ भी निकल सकता है लेकिन फिलहाल ये इन्किशाफ हुआ है कि मजकूरा गांव का प्रधान इलेक्शन कमीशन की वोटर लिस्ट को नहीं मानता । इस में कोई अजीब बात नहीं है । इस मुल्क में कई लोग आईन तक को नहीं मानते और उनकी बहुत बड़ी तादाद इक्तिदार पर काबिज है । वो लोग यातो दस्तूर की मन-मानी तौजीह करते हैं या उसे तस्लीम करने से इनकार कर देते हैं। बागी गावं प्रधान के पास उस की अपनी फहरिस्त है । इस को इस बात से गरज नहीं है कि जिन लोगों का नाम उस की फहरिस्त में मौजूद है वो सरकारी वोटर लिस्ट में शामिल हैं या नहीं । इस से भी उसे कोई मतलब नहीं होगा कि बदनामे जमाना एन आर सी में उनका इंदिराज हुआ है या नहीं ? वो तो क़ुव्वत से अपनी लिस्ट शामिल 171 लोगों का वोट डलवा कर फारिग हो गया।
इलेक्शन कमीशन के तहत अब ये जांच की जाएगी कि प्रधान को अपनी मन-मानी करने से क्यों रोका नहीं गया? और इस वक्त पोलिंग मर्कज पर तैनात सिक्योरिटी का अमला क्या कर रहा था ? इन सवालात का जवाब मालूम करने के लिए तफतीश की चंदाँ जरूरत नहीं है? गावं में प्रधान की मन-मानी इसी तरह चलती है जैसे मुल्क में प्रधान सेवक के मन की बात चलती है। वो एक रात में टेलीविजन पर नमूदार हो कर ऐलान फर्मा देते हैं कि रात बारह बजे के बाद से 500 के नोट बंद हो जाएंगे ? तो वो बंद हो जाते हैं । उनसे ये सवाल पूछने वाला कि ऐसा क्यों किया गया? देशद्रोही करार दे दिया जाता है। नोट बंदी तो दूर कोरोना को हराने के लिए वो तालाबंदी का ऐलान भी अपनी मर्जी से इसी तरह फर्मा देते हैं । उनसे ये पूछने की जुर्रत कोई नहीं करता कि अचानक उन्होंने ऐसा क्यों किया? और क्या इस से कोरोना रुक गया ? प्रधान जी अगर इतने बड़े बड़े काम कर सकते हैं तो क्या गावं का प्रधान उन लोगों के वोट भी नहीं डलवा सकता जिनका नाम वोटिंग लिस्ट में नहीं हैं । इस प्रधान के हाथ में भी अगर कमल का फूल हो तो भला उस का बाल कौन बीका करसकता है
इस बाबत मीडिया चमत्कार भी मुलाहिजा फरमाएं कि वो वजीरे आला का इस्तीफा तलब करना तो दूर उनसे इस्तिफसार तक करने की जहमत गवारा नहीं करता । वजीरे दाखिला इस बाबत अदम मालूमात का ऐतिराफ करके इलेक्शन कमीशन को सख़्त कार्रवाई का हुक्म दे देते हैं लेकिन अपने वजीरे आला और रुक्न असेंबली पर कोई कार्रवाई करने की जरूरत महसूस नहीं करते।
ईवीएम को लिफ्ट देने वाले रुक्न असेंबली से जब सवाल किया जाएगा कि आपने उस को अपनी गाड़ी में पनाह क्यों दी? तो वो भर्राई हुई आवाज में जवाब देंगे किसी मजबूर की मदद करना गुनाह है क्या? मौसूफ ये भी कह सकते हैं कि हमें क्या पिता कि इन लोगों के बक्से में क्या है? और उन्होंने ये बताया भी नहीं इसलिए सारा कसूर उनका है? हम तो ये भी नहीं जानते थे कि वो इलेक्शन अफ्सर है। वो आगे बढ़कर तफतीशी अफ्सर को डाँट कर ये भी कह सकते हैं कि अगर वो मशीन और अफसरान को बख़ैर व आफियत मर्कज तक नहीं पहुंचाता और डाकू या हिजबे इख़्तलाफ के लोग वहां पहुंच कर उसे लूट लेते। ऐसे में कौन जिम्मेदार होता? आज की तारीख़ में जबकि अदालते उज्मा तक कमल धारी वकील की बे दलील बातों के खिलाफ जाने की जुर्रत नहीं करती तो इस कदर मजबूत दलायल को भला कौन झुठला सकता है ? खैर ईवीएम के इस सुहाने सफर में मशीन के सारे वोट अपने हक में कर लेना निहायत सहल काम है और जो इस मौका का फायदा ना उठाए तो इस से बड़ा बेवक़ूफ कोई नहीं । वही लोग इस तरह के वाक़ियात से हैरान व परेशान होते हैं जो ईवीएम के नए अवतार और इस के नित-नए चमत्कार से वाक़िफ नहीं हैं। अहले दानिश जानते हैं कि जल्द या बदेर ये तो होना था।

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