लल्लन और कल्लन का बजट
डाक्टर सलीम खान
कल्लन स्वामी को नई ठाट बाट के साथ आते देखकर लल्लन शाह ने कहा ओहो आज इधर कैसे आ पड़े?
कल्लन हंसकर बोला घबराने की जरूरत नहीं मैं तेरे एरिया में धंधा करने के लिए नहीं अपनी चाची से मिलने आया हूँ।
लल्लन बोला यार तेरा हुलिया देखकर तो ऐसा लगता है कि तू ने धंधा बदल दिया है।
कैसी बातें करते हो लल्लन । इतना आरामदेह और मुनाफाबख्श कारोबार भला कौन बदल सकता है।
मैं समझा नहीं कल्लन । कारोबार तो सभी मुनाफाबख्श होते हैं लेकिन फिर भी लोग उनको बदलते हैं।
जी हां लेकिन ये तब्दीली उसी वक़्त होती है जब कि उसमें घाटा होने लगे या किसी को बहुत ज्यादा कमाने का मौका मिल जाये।
वही तो मैं कह रहा था कि कोई लाटरी वाटरी तो नहीं लग गई।
कल्लन बोला नहीं भाई वो अपने नसीब में कहाँ।
अच्छा ये बता कि तेरे हाथ में अख़बार क्या कर रहा है।
अरे भाई ये हाथी के दाँत हैं । अपने ग्राहकों को मुतास्सिर करने के लिए पुराना अख़बार लपेट कर रख लेता हूं । ये कौन देखता है कि कब का है।
हां यार मैंने भी सोचा कि आज का होगा । वैसे भी कल बजट आया है इसलिए आज हर कोई इस उम्मीद में अख़बार देख रहा है कि इस को क्या मिलेगा।
अहमक लोग बजट से ये उम्मीद लगाते हैं कि उनको कुछ मिलेगा हालाँकि वो तो उनकी जेब पर डाका डालने के लिए की जाने वाली मश्क होती है।
लल्लन ने कहा जी हाँ लेकिन कल में टेलीविजन पर देख रहा था हुकूमत ने कई सारी सहूलतों का ऐलान किया है।
सहूलत कैसी सहूलत ? में नहीं समझा।
अरे भाई क्या तुमने नहीं सुना कि अब 75 साल से ज्यादा उम्र वालों को टैक्स रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी
इस में कौन सी बड़ी बात है । अगर टैक्स भरने से सहूलत दे दी गई होती तब तो कोई बात थी।
अरे भाई रिटर्न ही नहीं भरेंगे तो टैक्स कैसे जमा होगा।
देखो लल्लन, आम तौर पर 75 साल के बाद या तो पैंशन मिलती है या बंैक के फिक्स्ड डिपोजिट का सूद । इस में से पहले ही टैक्स काट लिया जाएगा बात ख़त्म।
यार लोग बच्चों को लॉलीपॉप देते हैं इस सरकार ने तो बूढ़ों को लॉलीपॉप थमा दिया।
हाँ भाई सरकार के लिए बच्चा और बूढ़ा एक जैसा ही है । उन लोगों को जो भी मिले उस को बकरा बनाकर जब्ह कर देते हैं।
लल्लन ने पूछा कि यार छूट नहीं देते तो इस का शोर क्यों किया जाता है।
बेवक़ूफ बनाने के लिए ये खेल चलता है पुरानी 4 पाबंदियों को उठा कर 9 नई पाबंदियां लगा दी जाती हैं और अवाम को बहलाया फुसलाया जाता है।
यार अगर ऐसा है तो मेरी समझ में नहीं आता कि आखि़र ये पाबंदियां लगाई क्यों जाती हैं?
अरे भाई यही तो बजट है कुछ लगा दो और कुछ हटा लो लेकिन याद रखो हर साल छूट के मुकाबले में पाबंदियों के अंदर कुछ ना कुछ इजाफा ही होता है।
लल्लन ने कहा खैर अपने को क्या फर्क पड़ता है अपना बिजनेस तो सदाबहार है।
कैसी बातें करते हो लल्लन । अपनी तकदीर में बहार कहाँ ? हम लोग तो हमेशा से खजां रसीदा हैं और हमेशा उसी हालत में रहेंगे।
अच्छा सच सच बताओ कि हमारे धंधे पर इस बजट वजट का कोई असर होता है?
जी हाँ ये बात सही है कि हमारे कारोबार पर कोई खास असर नहीं होता क्योंकि जब लोग खुशहाल होते हैं तो हमें ख़ुशी ख़ुशी देते हैं।
और जब वो बदहाली का शिकार होते हैं तब तो इस से निकलने के लिए और ज्यादा देते हैं।
कल्लन बोला इसी लिए तो मैं कह रहा था कि हमारे यहां मंदी नहीं आती।
चलो मान गए लेकिन ये जो तुमने हुलिया बना रखा है क्या इस में तो लोग कुछ देने के बजाय तुमसे मांगने के लिए आजाते होंगे।
जी हाँ कुछ नासमझ कभी-कभार ऐसा कर देते हैं लेकिन बहुत कम । हमारी बिरादरी तो एक नजर में ताड़ लेती है कि बंदा देने वाला है या नहीं।
हाँ भाई ये तजुर्बे की बात है। वैसे दूकानदार गाहक देखते ही पहचान लेता है कि ख़रीदने के लिए आया है सिर्फ भाव मालूम कर रहा है।
यार तुम्हारी इस बात से कल टेलीविजन पर बजट के बारे में सुनते हुए मेरे दिल में जन्म लेने वाली एक खाहिश याद आगई।
लल्लन ने चहक कर पूछा, अच्छा मुझे भी बताओ कि निर्मला सीता रामन के बजट ने तुम्हारे दिल में कौन सी खाहिश को जन्म दिया?
वो अंकुर बता रहा था कि सरकार अपने बहुत सारे कारख़ाने फरोख़त करने का इरादा रखती है । मैंने सोचा कि अगर मेरे पास पैसे होते तो …
तुम भी कोई खरीद लेते क्यों ? अरे अहमक सरकार वही कारोबार बेचती है जो खसारे में हो।
नहीं ऐसा नहीं है । ये हुकूमत तो बी पी सी इल जैसी मुनाफा कमाने वाली कंपनी को भी बेचने का इरादा रखती है।
लल्लन ने हैरत से पूछा । अच्छा वो क्यों?
ये भी कोई सवाल है? अपने दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए और क्यों।
अरे भाई हमने वोट देकर इन हुकमरानों को इक्तिदार की कुर्सी पर फाइज किया है इस लिए सरमाया दारों के बजाय उसे अवाम का भला करना चाहिए।
वो तो ठीक है लेकिन ये भी तो सोचो कि हमने उसे वोट क्यों दिया।
हाँ यार ये बात तो अभी तक मेरी समझ में नहीं आई कि हर महाज पर नाकाम सरकार को अवाम ने फिर से मुंतखिब क्यूँ-कर दिया?
वो तश्हीर का जादू था । हमें जैसा खुशनुमा बनाकर दिखाया गया वैसा ही दिलफरेब नजर आया और हमने अपने वोट निछावर कर दिए। लेकिन इस का निजकारी से किया ताल्लुक।
लल्लन ने कहा तुम्हारे खयाल में खुशनुमा बनाकर दिखाने की फरेबकारी मुफ्त में की गई थी।
अच्छा तो क्या उस के पैसे दिए गए।
जी हाँ , जिन लोगों से कर्ज लेकर वो रक़म खर्च की गई अब उन्हें को सरकारी कंपनी बेची जा रही है ताकि आइन्दा भी चंदा मिलता रहे।
कल्लन बोला अच्छा अब समझा । तब तो मुझे कोई खसारे वाली कंपनी मसलन एयर इंडिया को ख़रीदने के बारे में सोचना चाहिए था।
यार कल्लन ये मत सोचो कि खसारे वाली कंपनी मुफ्त में मिल जाएगी । उस को ख़रीदने की भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
ये बात समझ में नहीं आई । इस कंपनी के साथ तो हुकूमत को मजीद सहूलत देनी चाहिए।
अरे भाई उन घाटा करने वाली कंपनीयों का भी जबरदस्त असासा है । वो सब मुफ्त में थोड़ी ना मिल जाएगा। इस की कीमत अदा करनी पड़ती है।
लेकिन यार फिर भी सोचने वाली बात ये है कि अगर सरकार उस का खसारा बर्दाश्त नहीं कर सकती तो कोई सरमाया-दार उसे कैसे सँभाल पाएगा।
देखो कल्लन ये बात सिर्फ अख़बार हाथ में लेकर घूमने से समझ में नहीं आती । उस के लिए दिमाग इस्तेमाल करना पड़ता है।
यार लल्लन चलो मान लिया कि मेरे सर में गोबर भरा है अब तुम ही बता दो कि ये क्या चक्कर है।
मैंने तो सुना है कि जिस कंपनी को फरोख़्त करना होता है इस को सरकार पहले जान-बूझ कर खसारे में डालती है।
ये कैसे मुम्किन है, भला कि किसी मुनाफा कमाने वाली कंपनी को घाटे में डाल दिया जाये।
अच्छा ये बताओ कि तुमने अगर गाय को चारा देना बंद कर दिया तो वो क्या वो लागर व दुबली नहीं होगी।
हाँ सो तो होगा लेकिन इस का क्या फायदा।
इस के बाद उसे औने-पौने बेचने का जवाज मिल जाता है।
हाँ समझ गया और ख़रीदने के बाद सरमाया-दार उस को चारा पानी देने लगता है और वो फिर से दूध देने लगती है।
जी हाँ ये पुराना खेल है जो नरसिंह राव के जमाने से चल रहा है । मोदी जी ने इस की रफ्तार बढ़ा दी है
लल्लन बोला यार बजट को छोड़ो ये बताओ कि इस शानदार लिबास में तुम भीक कैसे मांगते हो । हमारा तो दिन-भर में गला सूख जाता है।
भाई देखो हम दोनों में परचून और थोक के व्यपार का फर्क है। तुम दस लोगों से जो कमाते हो वो में एक से कमा लेता हूँ।
ये कैसे मुम्किन है । आजकल तो लोग पाँच रुपया भी दे देते हैं।
अच्छा पाँच रुपया ? इस महंगाई के दौर में इस से क्या होता है ? उसे तो उन कमीनों के मुँह पर दे मारना चाहिए।
यार वो तो मुश्किल है लेकिन कल मैंने एक से कह दिया कि अब ये सिक्का नहीं चलता।
अच्छा तो वो क्या बोला।
वो कुछ कहे बगैर सिक्का मेरे हाथ से लेकर आगे बढ़ गया, लेकिन ये बताओ कि तुम थोक का व्यपार कैसे करते हो।
यार ये तो करके दिखाना पड़ेगा । अगर तुम इजाजत दो में सामने से आने वाले शिकार पर जाल फेंकूं
अरे भाई वो महा कंजूस सेठ जमनमल है मैंने तो इस से माँगना छोड़ दिया है।
मैं देखता हूँ ये कह कर कल्लन ने जमन से कहा सेठ जी में पढ़ा लिखा ग्रैजूएट हूँ।
जमन ने जवाब दिया तो में क्या करूँ ? मेरे पास कोई मुलाजिमत नहीं है।
सेठ जी में नौकरी करता हूँ लेकिन आज मुझे आपकी मदद चाहिए।
मैं भिखारियों की मदद नहीं करता।
मैं भिखारी नहीं हूँ । मेरी बच्ची का ऐक्सिडन्ट हो गया है। ऑप्रेशन के 10 हजार में सिर्फ 500 रुपय कम पड़ रहे हैं।
तो में क्या करूँ।
आप मेरी मदद करें । ये देखिए ये अस्पताल की चिट्ठी है। मैं आपको साढे नौ हजार देता हूँ आप दस हजार जमा कर दें ।
जमन ने कहा मेरे पास इसकी फुर्सत नहीं । ये पाँच सौ लो और अपनी बेटी का इलाज कराओ । जमन मल 500 का नोट पकड़ा कर चल दिए।
लल्लन बोला यार कमाल हो गया जो शख्स पाँच रुपया नहीं देता उस को बेवकूफ बनाकर तुमने पाँच सौ रुपया ऐंठ लिया । ये फन किस से सीखा।
सरकार से । वो भी तो यही करती है बेवक़ूफ बनाकर हमसे हमारा वोट ऐंठ लेती है।
अच्छा तब तो कल से में भी जेंटलमैन भिखारी बन जाउंगा।
लेकिन इस के लिए तुम्हें अपना इलाका बदलना होगा । इस एरिया के लोग तुम्हें पहचान गए हैं इसलिए झांसे में नहीं आएँगे।
हाँ यार ये भी जरूरी है। ये आईडिया तुमने किस ने सुझाया।
सियासी रहनुमाओं ने। उनको भी जब लोग पहचान लेते हैं तो वो अपना हलकाए इंतिखाब बदल देते हैं।
जी हाँ कभी-कभार पार्टी और पर्चम भी बदलना पड़ता है । में भी अपना सब कुछ बदल कर नए इलाके से रोजी कमाऊंगा।
कल्लन बोला ठीक है दोस्त मेरी नेक खाहिशात तुम्हारे साथ हैं।
लल्लन ने शुक्रिया अदा किया और पूछा यार अब तुम ही बताओ कि अब इस इलाका से निकल कर नोट मांगे के लिए कहाँ जाउं।
लल्लन बोला तुम चेहरे से साधू लगते हो भेस बदल कर काशी पहुंच जाओ । मेरा खयाल है जल्द ही तुम्हारे अच्छे दिन आ जाऐंगे।
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