किसान आंदोलन के सहारे किसकी सियासी ज़मीन होगी मजबूत*
*(शिब्ली रामपुरी)*
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा के सामने सभी विपक्षी पार्टियों की तमाम सियासत फ्लॉप हो चुकी है और भाजपा कमजोर होने के बजाय लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है तो दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां लगातार कमजोर हो चुकी हैं यहां तक कि कई विपक्षी पार्टियां जो कल तक अपने सुनहरे दौर में थी आज वह अपने सबसे खराब दौर में पहुंच चुकी हैं. कई राजनीतिक पार्टियों को तो जनता ने पूरी तरह से नकारने का मन बना लिया है और इसी का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिल रहा है. वर्तमान समय में नए कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है. किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं. पहले इस मामले में किसी पार्टी की ओर से कुछ ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई गई थी लेकिन जिस तरह से किसानों ने अपना आंदोलन तेज किया तो उसके बाद से तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां किसानों की हिमायत में कूद चुकी हैं. यूपी की हम बात करें तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी किसानों के हक में आवाज बुलंद की है और समाजवादी पार्टी ने तो किसान यात्रा के सहारे एक बार फिर से सड़क पर उतरकर सियासत करने का आगाज किया है. यूपी के विपक्षी दल किसानों के इस आंदोलन के सहारे अपनी सियासी जमीन फिर से मजबूत करने में जुट गए हैं. जिसमें समाजवादी पार्टी ने किसान आंदोलन के सहारे किसानों की नाराजगी को पूरे जोशो खरोश के साथ उठाने की तैयारी की है और इस मामले में खुद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मोर्चा संभाला है. किसानों द्वारा किए गए बंद को भी सभी विपक्षी पार्टियों की तरफ से समर्थन हासिल है.कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी. बहुजन समाज पार्टी. समाजवादी पार्टी तक ने किसानों के बंद की हिमायत की है और कहा है कि वह किसानों के पूरी तरह से साथ हैं. वैसे तो सबसे ज्यादा नाराजगी हरियाणा और पंजाब के किसानों में देखने को मिल रही है लेकिन जिस तरह से यह आंदोलन बढ़ रहा है उससे कई और राज्यों के किसानों की काफी संख्या भी इस आंदोलन में शामिल होती दिखाई दे रही है. सभी विपक्षी पार्टियां खुद को सबसे बड़ा किसानों का हमदर्द साबित करने में भी जुट गई हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वह भली-भांति जानती हैं कि यदि किसानों के हक में वह अपनी सियासत को चमकाने में कामयाब हो गई तो एक बार फिर से वह बीजेपी के सामने खुद को मजबूत स्थिति में ला सकती हैं. इस मामले में कांग्रेस भी पूरे जोशो खरोश में है और कांग्रेस के लीडर सोशल मीडिया तक पर अपनी बात किसानों के हक में रख रहे हैं और यह साबित करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि पूरी कांग्रेस पार्टी किसानों के हक में है और कांग्रेस ने हमेशा किसानों के अधिकारों की बात की है. कांग्रेस के सामने अजीब तरह की कशमकश है वह सियासी मुद्दों को जोशो खरोश से उठाती नजर तो आती है और सड़क पर उतरकर कांग्रेस के कई नेता भी सियासत करते हैं लेकिन जब चुनावी नतीजे सामने आते हैं तो कांग्रेस उसमें कमज़ोर ही साबित होती है. बिहार विधानसभा चुनाव और हाल ही में हैदराबाद के चुनावों से साबित हो गया कि कांग्रेस की स्थिति अभी सुधरने वाली नहीं है शायद इसके लिए कांग्रेस को काफी कुछ परिवर्तन करने की जरूरत है. ऐसे में किसान आंदोलन कांग्रेस की सियासी जमीन कितनी मजबूत कर पाता है यह भी कहना काफी कठिन है. फिर भी ये देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि किसान आंदोलन के सहारे विपक्षी पार्टियों में से कौन अपनी सियासी जमीन फिर से मजबूत कर पाने में सफल होता है.
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