*पत्रकारों के लिए आज भी कठिन है फर्ज़ को अंजाम देना*
*तमाम प्रयासों के बावजूद भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर उदासीन है सरकार का रवैया*
*(शिब्ली रामपुरी)*
हम ऐसी खबरें अक्सर पढ़ते हैं कि जिसमें बताया जाता है कि सरकार की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि पत्रकारों के साथ बदसलूकी एवं अभद्रता किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी.सबको उनका सम्मान करना होगा तो दूसरी ओर ऐसे समाचार भी प्रमुखता से सामने आते हैं कि जब किसी पत्रकार पर दबंगों द्वारा हमला कर दिया जाता है सच्चाई उजागर करने पर मारपीट या उसके घर में आग तक लगा दी जाती है एवं कई जगह पर तो पत्रकारों की जान तक ले ली जाती है. यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि आज भी पीड़ित पत्रकारों को न्याय के लिए काफी जद्दोजहद एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब जाकर उनको न्याय मिल पाता है या फिर बहुत से पत्रकारों को तो न्याय मिल ही नहीं पाता. काफी प्रयासों के बावजूद भी पत्रकारों की समस्याएं सरकारों तक नहीं पहुंचती या फिर पहुंचती भी है तो उन पर उतनी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता कि जितनी गंभीरता से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सरकार द्वारा सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है.कई बार कुछ पत्रकारों के मामले में तो सरकार द्वारा कार्रवाई करते समय इतनी देर हो जाती है कि देर से मिला न्याय अन्याय के बराबर वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है. ऐसा नहीं है कि पत्रकारों पर होते अत्याचारों के खिलाफ सिर्फ पत्रकारों द्वारा ही आवाज उठाई जाती है कई बार तो कई सांसदों द्वारा लोकसभा में भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर आवाज बुलंद होती रही है.लेकिन अफसोस की बात यह है कि पूर्व की सरकारों से लेकर वर्तमान सरकारों तक ने पत्रकारों के हित में ऐसे कोई कदम नहीं उठाए जिससे पत्रकारों के साथ होने वाले अत्याचारों की घटनाएं पूर्ण रूप से रोकी जा सके. यही वजह है कि आए दिन कहीं ना कहीं किसी ना किसी पत्रकार के साथ दबंग किस्म के लोगों द्वारा अत्याचार करने के मामले सामने आते रहते हैं. जो साफ इशारा करते हैं कि आज भी दबंग किस्म के लोगों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाना कोई बड़ी बात नहीं है और वह पत्रकारों पर अत्याचार करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते. इसकी प्रमुख वजह है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि जिससे यह कहा जा सके कि पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सरकारें गंभीर हैं. आखिर कब तक पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर मात्र बयानबाजी या दिल को बहलाने वाली बातों से ही मीडिया जगत को बहलाया जाता रहेगा. हाल ही में बलरामपुर जिले में पत्रकार के साथ जिस तरह की दर्दनाक और अफ़सोसनाक घटना सामने आई है वह इस तरफ इशारा करती है कि वक्त रहते सरकार द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाते हुए ऐसा कानून बनाने की जरूरत है कि जिससे पत्रकारों के साथ आए दिन होने वाली बदसलूकी.दुर्व्यवहार. उत्पीड़न की घटनाओं पर सख्ती से लगाम कसी जा सके. पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का दर्जा हासिल है और इसका सम्मान बरकरार रखने के लिए पत्रकारों को भी अपनी ओर से काफी कुछ प्रयास करने की जरूरत है. वर्तमान समय को देखते हुए तो पत्रकारों की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है.
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