*ईमानदार रहती सेकुलर पार्टियां तो क्या उभरते ओवैसी*
*(शिब्ली रामपुरी)*
बिहार में 5 सीटें जीतने के बाद एमआईएम के बारे में माना जा रहा है कि जैसे एमआईएम की वजह से सियासत में भूचाल आ चुका है और अब बीजेपी को एमआईएम हर जगह कामयाब होने देगी और एमआईएम तो वोट कटवा है और यह बीजेपी की बी पार्टी है और बीजेपी से इसकी डील हो चुकी है वगैरा-वगैरा बातें आजकल सियासी हलकों में खूब चर्चा का विषय बनी हुई हैं. बड़े-बड़े लेखक और पत्रकार इस पर अपनी राय का इजहार कर रहे हैं और समाचार पत्रों में बाकायदा आर्टिकल भी लिखे जा रहे हैं कि ओवैसी जैसे नेता का उभरना मुसलमानों समेत सेक्यूलर माहौल में बहुत बड़ा राजनीतिक खतरा है.ओवैसी जितने मजबूत होंगे उतना ही मजबूत कट्टरपंथ होगा कुछ इस तरह की बातें भी सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया में लिखी और कही जा रही हैं.ओवैसी के उभरने से कट्टरपंथ मजबूत होगा या फिर बीजेपी को बड़ा फायदा होगा यह तो अलग चर्चा का विषय है.लेकिन जिस पर बात होनी चाहिए उस बात को किस तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है. नजरअंदाज करने वाली बात यह है कि सारा का सारा कसूर बीजेपी पर डालकर सेक्यूलर पार्टियां अपना पल्ला बचाने में लगी हैं. एमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी द्वारा कई वर्षों से जो फसल बोई गई थी अब वह उसको काटने के प्रयास में हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव में 5 उम्मीदवारों का कामयाब होना है.जहां तक सेक्यूलर पार्टियों द्वारा ओवैसी पर आरोप-प्रत्यारोप की बात है तो वह खुद के गिरेबान में क्यों नहीं झांकती कि उनकी नाकामियों और गलतियों की वजह से ही ओवैसी जैसे नेताओं का उभार होता है और वह सियासत में खुद थोड़ा बहुत फायदा उठा कर बहुत बड़ा नुकसान दूसरी पार्टियों को हमेशा से करते रहे हैं. यह बात भी अपनी जगह कायम है कि ओवैसी अकेले ऐसे नेता नहीं है कि जिन पर भाजपा के इशारे पर काम करने या भाजपा से अंदरूनी डील जैसे आरोप लगे हैं इनसे पहले भी कई नेताओं पर इस तरह के आरोप राजनीति में लगते रहना आम सी बात है. अभी चंद दिन पहले की ही बात ले लीजिए जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि सपा को हराने के लिए वह बीजेपी को भी वोट दे सकती हैं तो यह शोर मचाया गया कि देखिए बसपा तो बीजेपी के साथ पहले अंदरूनी तौर पर थी लेकिन अब मायावती के बयान ने तो साफ ही कर दिया है कि बसपा भाजपा की ही बी पार्टी है या भाजपा के इशारे पर कार्य करती है. इस तरह की बातें मायावती के बयान के बाद कही जाने लगी तो मायावती को तुरंत इसका आभास हुआ और उन्होंने फौरन प्रेस कांफ्रेंस करके कह दिया कि वह किसी भी तरह से भाजपा से गठबंधन नहीं करेगी. मायावती ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि उनको डर था कि कहीं उनके भाजपा की हिमायत वाले बयान से बसपा के मुस्लिम वोटर ना छिटक जाए और आगामी चुनावों में बसपा को भारी शिकस्त का सामना करना पड़े. इसी नजरिए के तहत मायावती ने यू-टर्न लिया और अपने बयान से वह खुद किनारा करती नजर आई लेकिन इतना जरूर है कि उनके पहले और बाद के बयान का राजनीति में असर पड़ना लाजमी है और हम ऐसा आने वाले समय में जरूर देखेंगे. कांग्रेस की बात करते हैं कांग्रेस सबसे ज्यादा हमलावर एम आई एम पर है जब से बिहार विधानसभा चुनाव में एमआईएम ने 5 सीटों पर जीत हासिल की है तब से कांग्रेस की तरफ से उनको क्या कुछ नहीं कहा जा रहा है.रणदीप सुरजेवाला जो कांग्रेस के प्रवक्ता हैं उन्होंने तो ओवैसी को भाजपा का तोता तक करार दिया और साफ़ शब्दों में कहा कि भाजपा की बी पार्टी एमआईएम है और वह चुनाव के वक्त ध्रुवीकरण करने के लिए ओवैसी का खूब इस्तेमाल करती है. लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने अधूरी बात कही उन्होंने यह तो बता दिया कि कौन बी पार्टी है और किसके इशारे पर ओवैसी काम करते हैं लेकिन यह नहीं बताया कि ओवैसी जैसे नेताओं के उभार की वजह क्या है.क्या कांग्रेस से मायूस होना ओवैसी के उभार की वजह तो नहीं है? कभी कांग्रेस के पाले में मुस्लिम वोट भारी संख्या में जाता था लेकिन क्या आज ऐसा हो रहा है? क्यों कांग्रेस इस पर चिंतन नहीं करती और अब तो कांग्रेस के ही सीनियर नेता कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. ताजा उदाहरण कपिल सिब्बल का हमारे सामने है. कपिल सिब्बल कहते हैं कि क्या कोई पार्टी बगैर मजबूत नेतृत्व के चल सकती है? बहरहाल ओवैसी के उभार की वजह सेक्यूलर पार्टियों को तलाशनी चाहिए. जिस तरह से ओवैसी ने पश्चिम बंगाल और उसके बाद यूपी के विधानसभा चुनाव में मजबूती से उभरने की बात कही है उससे कांग्रेस के साथ साथ समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को भी काफी कुछ सोचने की जरूरत है.
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