क़ौमी मईशत: आगे आगे देखिए होता है क्या
डाक्टर सलीम खान
हिन्दुस्तान में नारों की रिवायत बहुत कदीम है मसलन इंदिरा गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ वाला नारा सभी ने सुना है लेकिन पिछले कुछ सालों से तो नारों का सैलाब आया हुआ है और उसने कोरोना वायरस की तरह पूरी क़ौम को अपनी लपेट में ले रखा है। ७ साल पहले वजीरे आजम नरेंद्र मोदी की जबान से जब पहली बार ‘सब का साथ सब का विकास’ सुना तो कानों पर यक़ीन नहीं आया । इसलिए कि 2013 में वजीरे आला नरेंद्र मोदी की छवि एक मुस्लिम दुश्मन रहनुमा की थी और पिछले एक साल में अब फिर हो गई है। गुजरात का फसाद लोग उस समय भी नहीं भूले थे और अब भी उस की यादें ताजा हैं लेकिन इस एक नारे की मदद से उनकी छवि बदलने की कोशिश की गई। मुस्लमानों ने तो खैर उस समय भी मोदी जी पर भरोसा नहीं किया था और न अब करते हैं लेकिन हिन्दुओं में संतुलित वर्ग जो साम्प्रदाश्कि शक्तियों के सत्ता में आ जाने से हिंसा के अंदेशों का शिकार था कुछ मुतमइन हो गया या कह लें कि झांसे आ गया।
इस खुशनुमा नारे ने बी जे पी के हलके असर को वसीअ करने में मदद की । उसी जमाने में ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा भी चल पड़ा । इस तरह गोया तरक़्क़ी और खुशहाली के ख़ाबों ने मोदी जी ने इकतिदार की राह हमवार कर दी । नारे से खाब दिखाना जितना आसान होता है मेहनत करके उन्हें साकार करना उतना ही मुश्किल होता है । इसलिए वजीरे आजम ने 2014 के अवाखिर में ‘मेक इन इंडिया’ का नया नारा लगा दिया । हर साल एक करोड़ 20 लाख नए लोगों को रोजगार फराहम करने के लिए ये लाजिमी था । समय के साथ मेक इन इंडिया का अलामती शेर कागजी निकला। नौजवानों को मुलाजिमत नहीं मिली तो मोदी जी ने 2015 मैं स्टार्ट अप इंडिया का नया नारा लगा दिया । अब वो बिलाबास्ता नौजवानों से कह रहे थे कि सरकार या निजी इदारों से नौकरी की आशा छोड़ कर ख़ुद अपना कारोबार शुरू करोगे तो हुकूमत तआवुन करेगी । ये तब्दीली दरअसल मेक इन इंडिया के मकसद में शिकस्त का खुला एतिराफ थी।
स्टार्ट अप इंडिया से ना जाने क्यों ये तास्सुर चला गया कि इस से सिर्फ ऊंची जात के अमीर कबीर लोगों का फायदा होगा और पसमांदा तबकात महरूम रह जाऐंगे इसलिए 2016 में स्टैंड अप इंडिया का नारा लगाया गया । ये स्टार्ट अप इंडिया की जुड़वां बहन थी जिस में पसमांदा और गरीब तबकात को अपने पैरों पर खड़े होने की तरगीब दी गई थी। वो बेचारे सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन की उम्मीद रखते थे । अब उनको भी मायूसी का शिकार कर दिया गया । ये उस समय की बात है जब देश की मआशी हालत बिगड़ती जा रही थी और बेरोजगारी की शरह ने 45 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया था । उससे मोदी जी ने तंग आकर देश के पढ़े लिखे नौजवानों को पकौड़े बेचने का मश्वरा दे दिया । इस पर खूब हंगामा हुआ। बेरोजगार नौजवानों ने अपनी डिग्री गले में डाल कर मोदी के जलसों में अहतिजाजन पकौड़ों की दूकान लगाई और साबिक़ वजीरे ख़जाना चिदंबरम ने यहां तक कह दिया कि अगर पकौड़े बेचना रोजगार है तो भीक माँगना भी एक काम है । नवजोत सिद्धू ने तो कह दिया कि मोदी ने देश को सिर्फ पकौड़े और भगोड़े दिए हैं ।
देश के इस मआशी इन्हितात में मोदी सरकार के दो अहमक़ाना फैसलों ने बहुत अहम किरदार अदा किया और रही सही कसर ना-आक़िबत-अँदेश लॉक डाउन ने पूरी कर दी। उनमें पहला फैसला अचानक नाफिज की जाने वाली नोटबंदी थी। ख़ातिर-ख़्वाह तैयारी के बगैर उठाया जाने वाला ये एक आजिलाना इकदाम था। इस का मकसद बदउनवानी का खातमा बताया गया लेकिन इसके सबब बदउनवानी का बहुत बड़ा सैलाब आ गया। हिन्दुस्तान का रुपया ख़ुद अपने ही बाजार में कम कीमत पर बिकने लगा । बैंक मुलाजिमीन पांचों उंगलियां घी में और उनके दलालों का सर कढ़ाई में चला गया। इसबीच बी जे पी वालों ने भी अपने कौपरेटीव बैंकों में खूब काले धन को सफेद बनाया । उनमें अमीत शाह का बैंक पेश पेश था । इस फैसले को नाफिज करने से पहले मुतबादिल नोट तैयार नहीं किए गए इसलिए बाजार में करंसी की शदीद कमी हो गई। ए टी एम के बाहर तवील कतार और अंदर खाली मशीन ने अवाम को रुला दिया और कई लोगों ने तो कतार में दम तोड़ दिया। पुराने नोट को ठिकाने लगाने और नए नोट छाप कर उन्हें पहुंचाने में करोडों रुपय खर्च हो गए । इस मशक्कत का सबसे भयानक पहलू ये था कि देश का सारा काला दिन सफेद हो गया । ये देश की मईशत को पहला सबसे बड़ा धक्का था।
इस ब्रेन हैम्रेज से अभी कौमी मईशत संभल ही नहीं पाई थी कि गब्बर सिंह टैक्स यानी जी एसटी वारिद हो गया। इस की दहश्त से मईशत को दिल का ऐसा शदीद दौड़ा पड़ा कि वो अब भी कोमा में है। साबिक़ वजीरे ख़जाना अरूण जेटली चूंकि पहले से मुश्किलात का अंदाजा नहीं लगा पाए थे इसलिए हर-रोज किसी न किसी तरमीम का ऐलान कर देते थे । जी एसटी ने छोटे और मझोले दर्जा की सनअत को बे-मौत मार दिया और मईशत की गाड़ी जो पटरी से उत्तरी तो अभी तक लौट कर नहीं आई। पहले तो अवाम और फिर ताजिर व सनअतकार लेकिन अब तो सूबाई हुकूमतें उस की सजा भुगत रही हैं। पहले टैक्स की तकसीम बहुत सादा थी । इन्कम टैक्स मर्कजी हुकूमत की जेब में चला जाता। सेल्स टैक्स रियास्ती हुकूमत के खजाने का हिस्सा बनता और राहदारी पर मुताल्लिक़ा शहर का हक बनता था । ये निजाम बरसों से बगैर किसी मुश्किल के जारी व सारी था। किसी को इस से शिकायत नहीं थी। मर्कजी हुकूमत ने उसे जी एसटी की छतरी में जमा करके अपने खजाने में जमा कर लिया और ख़ुद इस पर सांप बन कर बैठ गई। अब अगर वुजराए आला ने अपना हिस्सा तलब किया तो सरकार ने ठेंगा दिखा दिया ।
मर्कजी वजीरे ख़जाना ने कोरोना का बहाना बनाकर कर्ज लेकर काम चलाने का मशवरा दे दिया। ये अजीब मंतिक है कि मर्कजी हुकूमत कर्ज लेकर अपने वाजिबुल-अदा बकाया जात अदा करने के बजाय उल्टा कर्ज लेने की तलकीन कर रही है। मोदी सरकार ने दुनिया की मआशी तारीख़ में अपनी ही सूबाई हुकूमत की गिरह कट करने का ये अनोखा वाकिया दर्ज किया है। इसके लिए कोरोना की आसमानी सुलतानी को बहाना बनाया गया । हालाँकि कोरोना ना तो हिन्दुस्तान से शुरू हुआ और ना यहां आकर ख़त्म हुआ। ये तो एक आलमी वबा है। जिस चीन से ये वबा फूटी इस ने दूसरी सहि माही की जी डी में 3.2 फीसद की तरक्क़ी दर्ज कराई और जिस हिन्दुस्तान में इस का नोटिस तीन माह बाद लिया गया उस की मईशत 23 फीसद नीचे उतर गई। इसलिए कोरोना का बहाना काम नहीं आएगा। हिन्दुस्तान से ज्यादा मुतास्सिरीन अमरीका और ब्राजील नुक़सान 9 फीसद के आस-पास है और लोग 24 फीसद नीचे आ गए । उस का मतलब है कि ये कोरोना के सबब नहीं बल्कि कोरोना से निमटने में की जाने वाली बदइंतिजामी और सरकारी नाअहली की वजह से है। माहिरीन की राय ये है कोरोना तो एक बहाना है हिन्दुस्तान की मआशी सूरते हाल तो पहले ही कोमा में थी, को रोना ने उसे वेंटीलेटर पर पहुंचा दिया है ।
पार्कल प्रभाकर जैसे लोग जब हुकूमत को संगीन मआशी सूरते हाल से आगाह कर रहे थे तो वजीरे आजम 5 ट्रीलियन डालर के ख़ाबों में खोए हुए थे । वजीरे दाखिला कश्मीर की दफा 370 का खातमा करके अपनी पीठ थपथपा रहे थे । बाबरी मस्जिद के खिलाफ फैसला करवाने की खातिर अदालते उज्मा में साजिश रची जा रही थी। एक अजीम नाइंसाफी का जश्न मनाया जा रहा था । एनआरसी का बयान करके डिटेंशन सेंटर का डर दिखाया जा रहा था । बाहर से लोगों को लाकर बसाने और अपने मुल्क से शहरियों को निकालने की धमकियां दी जा रही थीं । शाहीन बाग को बदनाम करने कोशिश हो रही थी । देश के गद्दारों को गोली मारो जैसे नारे लग रहे थे। जामिया, जेएनयू और अलीगढ़ यूनीवर्सिटी में पुलिस जालिमाना कहर ढा रही थी । मध्य प्रदेश में सरकार गिराने की मजमूम कोशिश हो रही थी । तब्लीगी जमाअत को बदनाम किया जा रहा था । दिल्ली में फसाद भड़का कर सी ए ए मुखालिफ मुजाहिरीन को पाबंदे सलासिल किया जा रहा था । यलगार परिषद की आड़ में दानिशवरों का गला घोंटा जा रहा था। राम मंदिर का शिला न्यास हो रहा था । हुकूमत इन गैर जरूरी कामों में इस कदर मसरूफ थी कि मईशत की जानिब तवज्जा देने की उसे फुर्सत ही नहीं थी । उसका नतीजा ये निकला एक चैथाई जी डी पी सिकुड़ गई लेकिन ये तो बस इब्तिदा है । बकौल मीर तक़ी मीर
राह दौरे इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
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