प्रशांत भूषण: मुंसिफ के दिल में रह गई हसरत खरीद की

प्रशांत भूषण: मुंसिफ के दिल में रह गई हसरत खरीद की
डाक्टर सलीम खान
प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट के जरिया अजखुद दर्ज किया जाने वाला हतके इज्जत का मुक़दमा मुल्क में आजादी, अदल और मसावात जैसे खूबसूरत नारों की कलई खोलने के लिए काफी था ऊपर से यौमे आजादी से एक दिन पहले उनको तौहीने अदालत के मामले में कु़सूरवार भी ठहरा दिया। इस तरह अदालत की आड़ में खेली जाने वाली सियासत का पर्दा फाश हो गया । अदालती बेंच ने फैसला करने के बाद फौरन सजा सुनाने के बजाय 20 अगस्त तक इस को टाल दिया । इस आसाब की जंग में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आपको बिलावजह मुब्तला कर रखा है । अदालत के रवैय्या से ये बार-बार ज़ाहिर हो रहा है कि वो सजा नहीं देना चाहती बल्कि प्रशांत भूषण से माफी मंगवाने की खातिर बार बार मौका दे रही है। इस के बरअक्स प्रशांत ने भी ये तै कर रखा है कि जेल तो जाएंगे मगर माफी नहीं मागेंगे । उनका कहना है कि उनके ट्वीट चूकि जजों के जाती अखलाक के खिलाफ थे इसलिए अदालती उमूर में रुकावट नहीं बनते। अदालत इस दलील से इत्तिफाक नहीं करती । उस का मौकिफ तो ये है कि
तुमने सच्च बोलने की जुर्रत की
ये भी तौहीन है अदालत की
20 अगस्त को जब सजा सुनाने के लिए समाअत का आगाज हुआ तो प्रशांत भूषण ने अपने खिलाफ तौहीने अदालत में सजा की मिक़दार पर तै करने का इख़्तियार मुख्तलिफ बेंच के सपुर्द करने की दरखास्त पेश की। इस को मुस्तरद करते हुए अदालत ने कहा कि सजा सुनाने से मुताल्लिक दलायल किसी और बेंच के जरिया सुने जाने का मुतालिबा जायज नहीं है और गालिबन उसका ये मतलब निकाला कि वो कुछ खौफजदा हो गए हैं । भूषण चूंकि तौहीने अदालत की अपनी सजा के खिलाफ नजरसानी की दरखास्त दायर करने का इरादा रखते हैं इसलिए अदालत से इस्तिदा की कि इस मामले का फैसला आने तक समाअत को मुल्तवी किया जाये । बेंच ने इस से भी इनकार कर दिया और ये समझ लिया कि शायद उनके अंदर लचक पैदा हुई है। इसलिए सुनवाई को जारी रखते हुए जस्टिस अरूण मिश्रा, बी आर गोई और कृष्ण मुरारी के बेंच ने भी नरमी का मुजाहरा करते हुए भूषण को यक़ीन दिलाया कि उनके जायजे की दरखास्त का फैसला होने तक किसी सजा पर कार्रवाई नहीं होगी। दरअसल कोर्ट के दोनों अंदाजे गलत थे। आगे चल कर उन खुशफहमियों को भूषण ने बड़े मूअस्सिर अंदाज में दूर दिया ।
इस मुक़दमा की दिलचस्प बात ये थी कि आम तौर पर इस्तिगासा फरियाद करता है कि मेरे ऊपर मुजव्विजा कार्रवाई पर नजर सानी की जाये लेकिन यहां अदालत भूषण से अपने मौकिफ पर नजरे सानी की दरखास्त कर रही थी और उन्हें सोचने का समय दे रही थी । प्रशांत भूषण का जवाब था कि समय की बर्बादी है। उनका सोचा समझा मौकिफ तब्दील नहीं होगा। इस मौका पर प्रशांत भूषण ने अपनी दलील में गांधी जी का तजकिरा करते हुए कहा कि अगर वो सदा ए हक़ बुलंद करने में नाकाम रहे तो ये फराइज की तौहीन के मुतरादिफ होगा।इसी के साथ प्रशांत भूषण ने इस बात पर दुख का इजहार किया कि उनको इस अदालत की तौहीन का क़सूरवार ठहराया गया है कि 30 बरसों तक जिस का वक़ार क़ायम रखने की उन्होंने एक दरबारी या खुशामदी की हैसियत से नहीं की बल्कि बतौर मुहाफिज कोशिश की है। प्रशांत भूषण ने अपने खिलाफ सुनाए जाने वाले फैसले को हदफे तन्क़ीद बनाते हुए ये भी कहा कि उनको सदमा और मायूसी इस बात पर है कि इस मामला में मेरे इरादों का कोई सबूत पेश किए बगैर नतीजा अखज कर लिया गया। अदालत ने उन्हें शिकायत की कापी तक फराहम नहीं की। उनके ट्वीट्स को अदलिया के बुनियाद को गैर-मुस्तहकम करने की कोशिश करार देना नाकाबिले यक़ीन है ।
मोदी और शाह के सरकारी वकील यानी अटार्नी जनरल वीनू गोपाल का प्रशांत भूषण को सख्त से सख्त सजा सुनाने की दरखास्त करने के बजाय गौर व खौज के लिए अदालत से समय देने की गुजारिश करना एक चमत्कार से कम नहीं है लेकिन अंग्रेजी का मुहावरा है ‘किस्मत दिलेरों का साथ देती है’ इस मामले का खुलासा ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को डराने की कोशिश की लेकिन जब वो नहीं डरे तो अदालत खुद डर गई । प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने इस उम्मीद में हाथ डाला कि वो डर कर माफी मांग लेंगे और फिर जब भी हुकूमत या अदालत पर तन्क़ीद करेंगे तो उनका मुआफीनामा दिखा कर उन्हें रुस्वा किया जा सकेगा लेकिन ये दाओ उल्टा पड़ गया । प्रशांत भूषण डरने के बजाय लड़ गए । उन्होंने दो सफहात के नोटिस का जवाब132 सफहात का हलफनामा दाखिल कर के दिया । इस रद्दे अमल को देखकर खुद सुप्रीम कोर्ट के जज घबरा गए।
इस के बाद जज साहिबान ने वीडीयो कान्फ्रेंसिंग के जरिया होने वाली खुली अदालत में तो माईक्रोफोन बंद करके प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन से फोन पर इन्फिरादी गुफ्तगु की। कयास ये है कि माफी तलाफी के बाद मामला रफा दफा करने की पेशकश की गई होगी । लेकिन बात नहीं बनी प्रशांत भूषण ने दौराने समाअत भी माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया था और मजबूरन डरे सहमे जज साहिब को अपनी इज्जत बचाने के लिए मुक़दमा चलाने का फैसला करना पड़ा था वर्ना दीगर लोगों की मानिंद प्रशांत भूषण की भी जान बख्शी हो जाती। सुप्रीम कोर्ट बेंच कोर्ट और जजों के वक़ार का तहफ्फुज करने की खातिर इस मामले को अंजाम तक पहुंचाना चाहती थी ।
जुलाई 21 को प्रशांत भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अज खुद नोटिस लेते हुए तौहीने अदालत की कार्रवाई का इरादा करके जस्टिस अरूण मिश्रा की कियादत वाली बेंच ने जो अहमक़ाना जाल बुना वो अब इस में पूरी तरह फंस चुकी है। इस की हालत कहा भी ना जाये ना जाये और सहा भी ना जाये जैसी हो गई है। अब वो फैसला नहीं कर पा रही है कि आखिर इस मामले को कैसे शांत किया जाये? इसलिए कि उसने अदलिया की शांति भंग कर दी है। प्रशांत भूषण ने फिर एक-बार ये साबित कर दिया कि हाथ जोड़ कर माफी मांगने वालों को आफियत तो मिल जाती है बल्कि इनाम व इकराम से भी नवाजा जाता है लेकिन ऐसे लोग इज्जत व एहतिराम की निगाह से कभी नहीं देखे जाते ।
सुप्रीम कोर्ट में बहुत सारे वकील निहायत जहीन, काबिल और दौलतमंद हैं लेकिन उनके बीच प्रशांत भूषण को जरा और दिलेरी की सबब सुर्खरूई हासिल हुई है । प्रशांत से कोई ये नहीं कहता कि वो जज्बाती हैं । उन्होंने जोश में आकर अपने आपको आजमाईश में डाल दिया है। वो अगर कल को जेल चले गए तो हरकोई रंजीदा तो होगा लेकिन कोई शिकवे-शिकायत नहीं करेगा क्योंकि खुद प्रशांत को इस का अफसोस नहीं है। उन्होंने आगे बढ़ इस आजमाईश को गले लगाया है । उनकी ये बहादुरी दूसरों का हौसला बुलंद करेगी और जज्बे हुर्रियत को जिला बख्शेगी । ये मुक़द्दस जज्बे तक़रीरों और तहरीरों से नहीं बल्कि पामर्दी के मुजाहिरे से पैदा होता है। सुप्रीम कोर्ट के बार-बार इसरार के बावजूद प्रशांत का माफी मांगने से इनकार कर देना इक़बाल साजिद का ये शेअर याद हैअलिफ
तू ने सदाक़तों का ना सौदा किया हुसैन
बातिल के दिल में रह गई हसरत ख़रीद की
यौम आशूरा की आमद आमद है । हम हर साल हजरत हुसैन को याद तो करते हैं लेकिन जुल्म व जब्र के खिलाफ उन्होंने जो बेमिसाल कुर्बानी पेश फरमाई, जिस अजीम तरीन सब्रो इस्तिकामत का मुजाहरा किया उसको भूल जाते हैं। यही वजह है कि हमें प्रशांत भूषण से तरगीब लेने की जरूरत पेश आती है। ये तो उम्मत की जिम्मेदारी है कि वो अपने दरमयान ईसार व कुर्बानी पेश करने वालों को कद्र की निगाह से देखे। इमामे आली मकाम के रहनुमा खुतूत को अपने लिए मशअले राह बनाए। उम्मत मुस्लिमा अगर आज भी इमाम हुसैन की सीरत को अपने सामने रखकर हक व इन्साफ की खातिर मैदाने अमल में आ जाए तो सारी बुजदिली और मस्लिहत पसंदी का अज खुद खात्मा हो जाएगा । वो ना सिर्फ खुद इज्जत व एहतिराम के मक़ामे बुलंद पर फाइज हो जाएगी बल्कि दूसरों के लिए भी अज्म व हौसला का मम्बा बन जाएगी लेकिन इस के लिए वो ईमान और जोश व वलवला दरकार है जो मुजफ्फर हनफी के इस शेअर में है:
चाहता ये हूं कि दुनिया जुल्म को पहचान जाये
खाह इस कर्बो बला के मार्के में जान जाये

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