*पार्टी में नेताओं की नाराजगी से आख़िर अनजान क्यों रहता है कांग्रेस हाईकमान?* *क्या वक्त रहते नहीं किया जा सकता कोई उपाय*
*पार्टी में नेताओं की नाराजगी से आख़िर अनजान क्यों रहता है कांग्रेस हाईकमान?*
*क्या वक्त रहते नहीं किया जा सकता कोई उपाय*
*(शिब्ली रामपुरी)*
कांग्रेस की वर्तमान हालत पर आंसू बहाने से पहले ज़रा उस दौर को भी याद कर लें जो कांग्रेस का सुनहरा दौर कहा जाता है. जब कांग्रेस अपने पूरे शबाब पर थी तब किसी भी कार्यकर्ता को किसी भी चुनाव में कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में उतार दिया गया तो वही कामयाब हो गया. हर किसी की यही चाहत रहती थी कि वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े क्योंकि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना एक दौर में कामयाबी की गारंटी समझा जाता था.बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदलता है लेकिन कांग्रेस में इतना परिवर्तन आ जाएगा ऐसा किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. वर्तमान में राजस्थान का सियासी संकट हमारे सामने हैं. कहा तो जा रहा है कि सचिन पायलट को दरकिनार करके कांग्रेस ने इससे पार पा ली है लेकिन यह कहना किसी भी तरह से गलत नहीं होगा कि कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे हैं जिनमें असंतोष पनपने लगा है और वह एक के बाद एक सामने आ रहे हैं. सचिन पायलट की ही बात करें तो सचिन पायलट को कांग्रेस ने राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया और उपमुख्यमंत्री पद से भी उनकी विदाई हो गई. जिसके बाद कांग्रेस में कई ऐसे युवा नेता सामने आए कि जिन्होंने सचिन पायलट का किसी ना किसी तरह से खुले तौर पर या दबी ज़बान में समर्थन किया है. कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद. प्रिया दत्त जैसे कई नेताओं ने सचिन पायलट का समर्थन किया और कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. प्रिया दत्त ने तो अपने ट्वीट में यहां तक लिखा कि महत्वकांक्षी होना कोई बुरी बात नहीं है. सचिन पायलट से पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की मिसाल भी हमारे सामने है कि किस तरह से पार्टी से नाराज होकर उन्होंने भाजपा का दामन थामा. सिंधिया ने भी कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस में उनको नजरअंदाज किया जाता है और कुछ इसी तरह का आरोप सचिन पायलट ने लगाया है. यूं तो सचिन पायलट ने कहा है कि वह भाजपा में नहीं जा रहे हैं. वह अभी भी कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और अपने अगले कदम पर वह समर्थकों के साथ चर्चा करेंगे. सचिन पायलट की इन बातों से साफ इशारा मिलता है कि वह भी खुद को पार्टी में किसी ना किसी तरह से नजरअंदाज महसूस करते हैं. यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस में जिस तरह से एक के बाद एक नेताओं में असंतोष पनप रहा है आखिर हाईकमान उसे शुरुआत में ही क्यों समझ नहीं पाता और जब तक वह समझ पाता है और कोशिशें की जाती हैं तब तक पानी सर से ऊपर गुजर चुका होता है. ऐसा ही सिंधिया के मामले में हुआ था और ऐसा ही कुछ सचिन पायलट के मामले में देखने को मिला.
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